तांड लिखित राजस्थान का इतिहास | Annals & Antiquities Of Rajasthan

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श्रेणी :
Annals & Antiquities Of Rajasthan  by ईश्वरी प्रसाद - Ishwari Prasad

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नाम - ईश्वरी प्रसाद
जन्म - 29.12.1938,
गाँव - टेरो पाकलमेड़ी, बेड़ो, राँची

परिजन - माता-फगुनी देवी, पिता- दुखी महतो, पत्नी- दुलारी देवी

शिक्षा - मैट्रिक; बालकृष्णा उच्च विद्यालय, राँची, 1952
आई० ए०; संत जेवियर कालेज, रॉची, 1954-1955
बी० ए०; संत कोलम्बस कालेज, हजारीबाग, 1956-1957

व्यवसाय - शिक्षक; बेड़ो उच्च विद्यालय, 1958-1959, सिनी उच्च विद्यालय, 1960
पशुपालन विभाग, चाईबासा, 1961, राँची, 1962-1963 मई 1963 से एच० ई० सी०, 1992 में सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत

विशेष योगदान --

राजनीतिक -
• एच० ई० सी० ट्रेड यूनियन में सीटू और एटक का महासचिव
• अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, चेकोस्लोवाकिया में ट्रेड

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হান साहब का जीवन चरित्र भारतवर्ष में प्राचोन काल से ही इतिहास लिखने .की प्रथा न होने के “काररण सन्‌ इसवो की उन्नोसवीं शताददों के प्रारभ्म काल तक प्रसिद्ध राजपूत जाति एवम्‌ राजपूताने का इतिहास जानने के लिए कुं मौ योग्य साधन न थे । राजपूत जाति के परम हतेषो कर्नल जेम्् टांड ने जब से राजपुताने में श्रना कदम रखा , तबसेहौी उनके चित्त में राजपूत जाति क इतिहास के प्रभाव को दूर करने का विचार उत्पन्न हुआ , जिससे पच्चीस वर्षों के सतत परिश्रम से उन्होने पूर्णं कर राजपूतों की कोति के जय-स्तश्म रूप राजस्थान के इतिहास को प्रकट किया । उन्होंने अपना यह प्रपर्व ग्रंथ ऐसे समय में लिखा था , जब कि कुछ भी सामग्रो कहों से तेयार मिलने की सम्भा- बना ही नहीं थी । >< >< टाँड साहब की इस पुस्तक में कई स्थानों पर परिवर्तन करने को ग्रावश््यकता श्रवश्य रही । फिर भी , उनका यह ग्रंथ श्रव तक राजपूत जाति तथा राजपूताना के लिए प्रमारण रूप माना जाता है । कर्नेल जेम्स टाँड , स्कॉटलेएड के निवासी मिस्टर जेम्स ठॉड के दूसरे पुत्र श्रौर हेनरी टाड के पौश्र थे । उनका जन्म २० मार्च १७८२ ईसवी को इंगलेए्ड के इस्लिंगटन नामक स्थान में हुआ था । टाँड साहब के सामा मिस्टर पेद्रिक हेठली ने , जो बंगाल के सिविलियन थे , उनको हृष्ट दइखिडिया कम्पनीं के सेनिक उम्मेदवारों में भारती करा दिया था श्रौर वे सन्नह वर्षा की श्रवस्था में बंगाल भेज दिये गये थे । उसके बाद उनकी बदलो मुहिम में जाने वाली जब-सेना में हो गयी थी । उस मोके पर कुछ समय तक उनको एक जहाज की जल-सेना में काम करना पड़ा था | उसके बाद कलकत्ता , हरिद्वार होते हुए उनका तबादला देहली के लिए हो गया था । इज्ीनियरिंग के कास में कशल होने के कारण सन्‌ १८०१ ईसवी में देहली के पास पुरानी नहर की पंमाइदश करने का काम उनको सौंप दिया गया । इसके बाद वे मिस्टर मसंर के साय रहने वाली प्रंगरेजी सेना के एक श्रधिकारी बना दिये गये | उस समय तक योरोपियन विद्वानों को राजपूताना श्रोर उसके श्रास-पास के प्रदेशों का भूगोल सम्बन्धी ज्ञान बहुत हो कम था श्रौर उनके बनाये हृए नकक्नो मे प्रमुख स्थानों के स्यान मी तही-सही नये | मिस्टर ইলল ने उन मलों के हांसोधन का कुछ काम किया था , परंतु ये नकशे सही न बन पाये थे | ১৯ ১৮ তাত साहब पेमा दशा का कान करते हुए १८०६ ईसवो के जूत महीने में एक श्रंगरेजी राजदूत के साथ उदय पुर पहुँच गये । इसी समय उनके सन सें यह भाव पैदा हुआ कि राजवुताना श्रौर उसके भ्रास-पास के प्रदेशों का एक उत्तम नकशा तेयार किया जाय । इसी विचार से उनको जहाँ कहीं राजपूताना में जाने का झवसर मिला , वे श्रपना बहुत-सा समय इसी काम सें खर्च करने लगे श्रोर उन प्रदेशों के इतिहास, जनधरुति श्रौर रिला-लेखो का भी वे यथासाध्य संग्रह करने जाते थे । इस इतिहास की सामप्रीके संग्रह का कार्य यहीं से आरम्भ हुआ । थोड़े अ्ररसे में टाड साहब ने इस विस्तृत प्रदेशों के इतने नकशे तेयार किये कि उनकी ग्यारह जिल्दें बन गयों । उस समय राजपताना में मराहठों का जोर बढ़ा हुआ था झौर यहाँ के रईसों तथा सरदारों में भी परस्पर फूट फेली हुई थी। मराठों के प्रातंक झौर सरवारों की फूढ ।




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