राष्ट्रपिता | Rashtrapita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आंखों में रोशनी आई, नए रास्ते देखे और उन रास्तों पर लाखों और 'करोड़ों के साथ हमकदम हो कर चला । क्या मं एेसे शख्स की निस्यत লি जो कि हिन्दुस्तान का और मेरा जुज्ञ हो गया और जिसने कि जमाने को अपना बनाया ? हम जो इस जमाने मे बद ओर उसके असर मं परे, हम कंसे उसका अन्दाज्ना करं ? हमारे रग श्रोर रेशे मं उसकी मोहर पड़ी भौर हम सब उसके टुकडे हं । जहां -जहां मं हिन्दुस्तान के बाहर गया, चाहे यूरोप का कोई देश हो या चीन या कोई ओर मुल्क, पहला सवाल मुझसे यही हुआ-- “गांधीजी कंसे हें? अब क्‍या करते हैं?” हर जगह/.गांधीजी का नाम पहुंचा था, गांधीजी को शोहरत पहुंची थी। ग़रों के लिए गांधी हिन्दुस्तान ओर हिन्दुस्तान गांधी । हमारे देश की इज्जत बढ़ी, हेसियत बढ़ी । दुनिया ने तसलीम किया कि एक अजीब ऊंचे दर्जे का आदमी हिन्दुस्तान मं पेदा हुआ, फिर से अंधेरे मं रोहनौ आई । जो सवा लाखों के दिल में थे मौर उनको परेशान करते थे, उनके जवानों कौ कुछ झलक नजर आई । आज उस जवाब पर अमल नहो तो कल होगा, परसों होगा । उस जवाब में और जवाब भी मिलेंगे, ओर भी अंधेरे में रोशनी पड़ेगी; लेकिन वह बुनियाद पक्की हं ओर उसी पर इमारत खड़ी होगी । न रस्ट्ू तपत गर




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