पत्रावली | Patraavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
253
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पत्राघलो
किं यह एक सामाजिक नियम है--ग़ुण एवं कर्म से प्रसूत हे ।
यदि कोई नेष्कम्य एवं निर्गुणत्व को प्राप्त करना चाहता हो तो उसे
अपने मन में किसी प्रकार का जाति-भेद रखना द्वानिकर है। इन
मामला में गुरु के प्रसाद से मरे कुछ निश्चित विचार हैं, परन्तु यदि
में आपके विचार जान सकं तो मै उनके आधार पर अपने कुछ मता
की परिपुष्ट कर् सकूगा ओर् हष का संशोधन | मधुमक्खी के छन्त
को बास से बिना कोचे हुए शाहद नहीं टपक सकता। अतः में
आपसे कुछ प्रश्न और करूँगा। मुझको अज्ञ ओर बालक समझकर
बिना किसी प्रकार का क्रोध किये कृपया यथाथ उत्तर देंगे।
(१) वेदान्त-सूत्र में जिस मुक्ति का वर्णन हुआ दे, क्या उसमे
ओर अवधूत-गीता तथा अन्य म्रंथों में वर्णित निर्वाण में कोई भेद है
যা লহ?
(र्) यदि ‹ जगद्व्यापारवजं प्रकरणाद संनिहित्वाच्च | '# इस
सूत्र के अनुसार किसी को पृण ईश्वर प्राप्त नदीं हाता तौ नित्राण
का वास्तव में क्या अथ है !
(३) यह ` कहा जाता दै कि चेतन्यदेव ने सवेमीम से पुरी
में कहा, “में व्यास के सूत्रों को समझता हूँ। वे द्वेतात्मक हैं;
परन्तु भाष्यकारों ने उन्हें अद्वैतात्मक बना दिया हैं यह बात समझ
---------~ -------~~-+~~
५ इस सूत्र के अनुसार खष्टि, स्थिति ओर प्रलय इन तीनों कर्मा का
कर्ता तो केवल ईश्वर दै। जो जीव मुक्त हो जाते हैं उन्हें इन उपयुक्त तीन
शक्तियो फे अतिरिक्त सभी दैवी शक्तियो प्राप्त दो जाती है|
१९५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...