आदाब अर्ज़ | Aadab Arz

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Aadab Arz by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आंदाब अजे १२ उन बूढ़े सजन ने फिर पृछा--अापका इसा शरीफ -न काली बाबू ब्रोले--नेद, हम “शरीफ ( शहरों का चीफ शपफ र->फोजदार ) नई हाय, ओझोर ना कभी इस काम का वास्ते दोरों: खास्तो-फोरोलास्तो किया । वे सजन मुस्‍्कराते हुए बीले--खैर, अब हम सब समझ गये | कष्ट के लिये क्षमा कीजिएगा । हम झापसे मिलकर बहुत खुश हुए | इस समय तो आप अपने घर पधारिए । फिर जैसा होगा आपको सूचित किया जाएगा | नमस्कार काली बाबू अपने घर, कलकत्त लौट आए। अब गरहस केः ' सूचना आने भर की देर है। यह बिलकुल कर्स-करसांये तैयार बैठे इसी बीच' काज्ली बाबू ने यह बुद्धिमानी की, कि अपनी एक्क सुम्दर | तस्वीर उतरबा कर लखनऊ कालेज कै धिन्सपल के पाश्च पलना दिया | दो-चार किस्मके. नयेन्न शह मिलाया लिये) बस, शझब खबरें ` श्राव, तत्र खचर श्राव | वान दीक इन्सगाः द 4... मगर कम्बख्त खबर स्य शा तट 0.11




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