भाषा की शक्ति और अन्य निबन्ध | Bhasha Ki Shakti Aur Anya Nibandh

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Bhasha Ki Shakti Aur Anya Nibandh by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९ ) है। चतुर टीकाकार चाहे तो होली की गालियों को भी योगवदान्त के तत्त्वो से ओतप्रोत॑ सिद्ध कर सकता है। सम्भव है गाली के प्रयाक्ताका उद्देश्य भी बह्ाज्ञानोपदेश ही रहा हो परन्तु ऐसी दणा में उसको ऐसे दब्दों का प्रयोग नहीं करता चाहिए था जिनके अर्थावरण में से आध्या- त्मिक ध्वनि नहीं निकका करती। श्रद्धा या दुराग्रह से चाहे जी कहा जाय परन्तु यदि गीतगोविन्द के कैलिव्णेन में मुझे कोई आध्यात्मिक ` तथ्य नदर मिता तौ यह दोप जवदेव का है, मरा नहीं। काव्य-अ्न्थ इस आशय से बनाये जाते हैं कि उनका जनता में प्रचार हो। कवि को इतना ज्ञान होना चाहिए कि उते छहाब्दों से साधारणत: कैसा अर्थ ग्रहण किया जाता है जिनका उसने प्रयोग किया है। यदि शब्द-विन्यास विपय से असज्भत है तो फिर पाठक को दोप देना वैत्ा ही है कि 'उलठा चोर कोतवाले डॉट | एक अक्षर के दह्वरफेर से शब्द कुछ का कुछ हो जाता है और उसकी शक्ति में भाकाश-पाताल का अच्तर हो जाता हैं। त' और मे विभिन्न स्वर है परन्तु दो में से एक में भी कोई विशेष शतिति नहीं है । अदि एक की जगह दूसरा उच्चरित हो जाय तो हमारे ऊपर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता परत्तु मेरा छड़का मर गया' ओर 'तेरा लड़का मर गया के प्रभाव में कोई समानता ही नहीं मिक सकती। इसी प्रकार वक्‍ता के स्वर भेद से शब्द के सामर्थ्य में बडा अन्तर पड जाता है । तुमने ऐसा किया' वर्णतात्मक वाक्य है। 'किया' के स्वर को बदल देते से प्रवन हो जायगा: तुमने ऐसा किया ? तुमने! या ऐसा' के स्वर' से हेरफेर करने से आइचर्य, प्रशंसा, भत्तंना के भाव प्रदर्शित फिये जा सकते है। दोनों पर ज्ञोर देने से आइचरण्य ओर निन्दा कां केसा संभिश्रण प्रदर्शित होता है! स्वर के हस भावप्रदर्शक विकार को काकू कहते द | एक दूसरे के सान्निध्य से शब्दों की शक्तित पर और पानी चढ़ জালা है । परा रचग्रिता साक्निष्य के अतिरिक्त उनको भिन्न-भिन्न प्रकारों




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