कलरव | Kalrav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हि
रमा और सुशील दोनों अपने कमरे सें बेठे अध्ययन
कर रहे थे। सहसा रमा ने अपसी पुस्तक मेज पर रख दी
ओर सुशील की ओर देख कर बोली--मैय्या, अब तो तुम
लाहौर जा रद हो--हम लोगों से बहुत दूर, परन्तु ˆ“
परन्तु क्या ?' सुशील ने बीच में ही टोकते हुए पूछा ।
यही कि वहाँ जाकर किसी के माया जाल में फंसकर कदी ,.
हमें भूल न जाना !? समा ने कुछ गंभीर होते हुए कहा ।
पगली कहीं की !? सुशीक्ष ने रमा को ध्यान पूर्वक देखते
हुए कहा--श्धर कालेज जाने का समय हो गया है, और तुभे
यह् सव सू रहा है ! जा, भाग यहाँ से ।'
अच्छी बात है !? रसा ने खड़े होते हुए कहा--अभी तो
चली; पर कालेज से ज्ौट कर मैं इस सम्बंध मै तुमसे
अवश्य बात करूँगी |!
टा, हां देखा जायगा ।
इसी बीच में नौकर ने आकर सुशील से कहा--आपको
डाक्टर साहब बुला रहे हैं
सुशील तत्काल अपने पिताजी के कमरे में जा पहुँचा । उसे
देखते ही डाक्टर मोहन ने कद्दा--यह दर्जी बड़ी देर से तुम्हारी
प्रतीक्षा कर रहा है, बेटा ! इसे अपने कपड़ों का माप दे दो |!
जव दर्जी माप ले चुका, तो सुशील ने अपने पिताजी सरे.
कहा--पित्ताजी, लाहौर में क्या आऔगरेजी वेषभूषा में ही रहना
होगा ?
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