कलरव | Kalrav

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Kalrav by एम. बैनर्जी - M. Bainarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हि रमा और सुशील दोनों अपने कमरे सें बेठे अध्ययन कर रहे थे। सहसा रमा ने अपसी पुस्तक मेज पर रख दी ओर सुशील की ओर देख कर बोली--मैय्या, अब तो तुम लाहौर जा रद हो--हम लोगों से बहुत दूर, परन्तु ˆ“ परन्तु क्या ?' सुशील ने बीच में ही टोकते हुए पूछा । यही कि वहाँ जाकर किसी के माया जाल में फंसकर कदी ,. हमें भूल न जाना !? समा ने कुछ गंभीर होते हुए कहा । पगली कहीं की !? सुशीक्ष ने रमा को ध्यान पूर्वक देखते हुए कहा--श्धर कालेज जाने का समय हो गया है, और तुभे यह्‌ सव सू रहा है ! जा, भाग यहाँ से ।' अच्छी बात है !? रसा ने खड़े होते हुए कहा--अभी तो चली; पर कालेज से ज्ौट कर मैं इस सम्बंध मै तुमसे अवश्य बात करूँगी |! टा, हां देखा जायगा । इसी बीच में नौकर ने आकर सुशील से कहा--आपको डाक्टर साहब बुला रहे हैं सुशील तत्काल अपने पिताजी के कमरे में जा पहुँचा । उसे देखते ही डाक्टर मोहन ने कद्दा--यह दर्जी बड़ी देर से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है, बेटा ! इसे अपने कपड़ों का माप दे दो |! जव दर्जी माप ले चुका, तो सुशील ने अपने पिताजी सरे. कहा--पित्ताजी, लाहौर में क्या आऔगरेजी वेषभूषा में ही रहना होगा ?




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