जैन साहित्य का ब्रिहद् इतिहास | Jain Sahitya Ka Brihad Itihas

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Jain Sahitya Ka Brihad Itihas by अंबालाल शाह - Ambalal Shah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५५ ) प्रथम दु दारा विभिन्न सेदो के विनार प्र+द ऊिये गये है। दूसभ सूप--रहस्यतोधिफारी (अ० ९ सूत्र २) जेघानन्द बनाते ए कि रन्यो फो अनने থালা है विमान चलाने फा सिरो से सतना है। इस झर की व्याख्या फरते हुए यो ल्पिते एँ -- विमानरचने व्योमागेहणे चलने तथा। स्तस्भने गमने चित्रगतिधगादिनिणैये ॥ दैमानिफ रषस्यार्यतानसाधनमन्तया। यतो संमिद्दिनेंति सूत्रेण चर्णितम॥ अर्थात्‌ निस वैमानिफ व्यक्तिः फो अनेन प्रर के सद्य, रेते परिमानं ननि, उसे आराझ में उड़ाने, चलाने तथा आकादा में दी सकने, पुन चडाने, चिय- विचिच प्रमर की অনিক गतियाँ फे चनि फे जत मिमान की विधे আবহ में विशेष गतियों का निर्गय फरना जानता घ यही अधिकारी ऐ सकता है, दूसग नहीं । वृत्तिमार और भी रिखते ६ फि रस्याय आटि अनेक पुराफाल फे विभान- शान्तियों ने “रट्यल्ट्री” आदि प्रषों मे जो पताया है उसके अनुमार संक्षेप में वर्णेन स्ता हं) जेतव्य £ कि भरद्ान ऋषि के रचे “वैमानिक प्रकरण” से पहले कर्‌ अन्य आचारयों ने मी विमान विपयक अथ छिसे & উই ৮ नारायण और उसका लिखा ग्रथ 'विमानचन्द्रिका! घोनक ५ श्योमयानतत्रः गर्ग हा ০০০] चांचस्पति ,, শ্বাননিন্তু? चाफ्रायणि ,, व्योमयानाकी ঘুতিতনাষ + 'सेव्यानप्रदीषिका' | भरद्वान जी ने इन शार्सो का भी भलीभाति अवलोकन तथा विचार करके “बैमानिकप्रकरण” की परिभाषा को विस्तार से छिपा है--यह स7 वहाँ लिखा हुआ है। रहम्यलद्दरी में ३२ प्रकार के रहस्य वर्णित हैं ;--- एतानि द्वात्रिशद्रदस्यानि गुरोमु खात्‌। विज्ञानविधिवत्‌ सर्व पदचात्‌ काय समारभेत्‌ ॥




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