ज्ञानार्णव प्रवचन : भाग 1,2 | Gyanarnav Pravachan (Bhag - 1,2)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छद 2 १३ भाईका वाम ले लेनेसे था किसीका ताम आ जानेसे वे सब भाई सतुष्ट रहते ह । वे सोचते है कि इसमे हम सव आ गए । नाममेप्रभुताकौ मुख्यता है और नमस्कार करने बाला, नाम लेने वाला पुरुष अपने हृदयमें यह भाव नहीं रखता कि मैं इनको ही नमस्कार करू औरको नही, इस कारण सभौ इस गमित हो जाते है । श्रिय सकलकल्याणकुमृदाकर चद्रमाः। देव: श्री व मानाख्य' क्रियादभव्याभिनन्दिताम्‌ ॥ ५॥ श्री वद्धेसान प्रभुको नम्स्कार--श्री वर्दमान नामक स्वामी अच्तिम तीर्थकरदेव जो भ्प पुरुषोके द्वारा वदनीय है, प्रशसित है, वे इष्ट तक्षको भभिनन्दित, वधत करे । मे वर्दभान स्वामी सकलजनोके कल्याणरूपी कमलोके समृूहके लिये चद्रमाकी तरह है। जैसे चद्र कमलको प्रफुल्लित करने वाला है इसी प्रकार यह वद्धंमान प्रभु भव्य जीवोके वल्यागको उत्पत्त करने वाले है। वरद्धमान प्रभु चूँकि वद्धभान नाम हैं त, तो अपनी किसी वृद्धिके लिये वद्धं ानका नाम विशेषतया लोग चुना करते है । वह नामकी समता है । तौर्थकर तो सभी एक समान है । इस युगमे इस वर्तमान समयमें जिस धर्म तीर्थको पाकर जिस तत्त्वज्ञानकों पाकर हम आप सतुष्ट होते है, आकूलता दूर करते है, ज्ञानका आनन्द लेते है, इस युगमे उस धर्म तीर्थके प्रणेता वद्धमान स्वामी है। पाश्वनाथ मौर वदमान स्वामीके बीचके समयमे धर्मकी हीनता हो गयी थी ओौर अब जो धर्मका प्रवाह चल रहा है यह वर्धमान स्वामीके समवशरणमे प्रकट हुए धर्म परम्परासे चल रहा है । इप कारण प्रथम तीर्थकर्र महावीर स्वामी कहलाते है। सम्पग्दशन कर्णधार--प्रभु स्वयं कल्याणसे परिपूर्ण है अतएवं वे भव्य जीवोके कल्याणके भी कारण है । प्रभु स्वयं कर्मोका विनाश कर चुके है अतएव भव्यजीवोके विध्नो के विनाशके कारण है। इनके वचन मोक्षमार्ग रूप निकले है। ऐसे वर्द्धमान स्वामीसे वाड्छित लक्ष्मीकी प्रार्थना करना युक्त है। जैसे ताव चलाने वाला खूब चलाता है पर नाव का कर्णधार जो नावके पीछे खडा रहता है, एक सूपके आकारका करिया नामक काष्ठ का यत्र लिए रहता है, वह जिस प्रकारसे घुमा दे, नाव उस ओर चल देती है। इसमे तो कू शक नही है कि प्रत्येक जीव बडा जागरूक है और निरतर कार्य करता रहता है। - सिद्ध प्रभु हो तो, सप्तारी जीव हो तो सभी जागरूक है अपने कामसे और निरतर चेष्टा करते जा रहे है, पृर॒षार्थ करते जा रहे है। बर्स जिनको वह सम्यम्ज्ञानका काष्ठयंत्ञ मिला सम्यग्दर्शन कर्णधार मिला तो वह अग्नो चर्याको योग्यपद्तिमं निभा ले जाते है और जिसको यह्‌ कर्णधार नहो प्राप्त हुमा है उप नैया तो भवोदधिमे यत्त तत्र ोलती रहेगी ।




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