कथा - कोश | Katha - Kosh
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.78 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है
शाल्व शिशुपाल का मित्र था । वह रुक्मिणी के विवाह के झवसर
पर बारात में, शिशुपाल की छोर से, गया था । रुक्मिणी-हरण के समय
यदुवंशियों ने युद्ध मे जरासन्ध आदि के साथ शाल्व को भी हराया
था | तभी शाल्व ने यदुवंशियो के नाश की प्रतिज्ञा की थी । इसी कारण
_ उसने झाशुत्तोष भगवान् शंकर को मनाने के लिए उम्र तपस्या की । शंकर
के प्रसन्न होने पर शाल्व ने वर माँगा कि मुझे आप ऐसा विमान
दीजिए जो देवता, असुर, मनुष्य, गंध, नाग और राच्तसों से भी तोढ़ा
न जा सके । विमान स्वेच्छाचारी और यदुवंशियों का नाश करनेवाला
हो | तब भगवान् शंकर ने मय दानव से लोहे का “सोभ” नामक विमान
बनवाकर शाल्व को दे दिया । शाल्व ने इसी विमान पर चढ़ द्वारका
पर चढ़ाई कर दी । प्रयुम्न और शाल्व का घमासान युद्ध हुआ ।
उन दिसों श्रीकृष्ण और बलराम इन्द्रप्रस्थ गये हुए थे । श्रीकृष्ण
द्वारका पर आई चिपत्ति की सूचना पाकर लौट झाये । युद्ध-भूमि
में झाये तो शाल्व, झपने मित्र शिशुपाल की स्त्यु श्र रुक्मिणी-हरण
को याद कर, कृष्णाजी पर टूट पढ़ा । वहुत देर तक श्रीकृष्ण और
शात्व में युद्ध होता रद्दा । अन्त मे भगवान् के चक्र से उसकी स्त्यु
दो गई श्यौर उसका दिंव्य विमान भी चूर-चूर हो गया।
झंवरीप, दुवासा, सुदशन चक्र, कृत्पा
१... सूयवंशी राजा अंवरीप परम प्रतापी झौर भगवान् के भक्त थे ।
एक बार उन्होंने एकादशी का ब्रत करने का निश्चय किया । एकादशी
का ब्रत कर एक दिन वे, द्वादशी को कुछ खाकर, ब्रत पूरा करने ही जा
रहे थे +कि दुर्बासा सुनि अनेक कऋूषियों के साथ झा पहुँचे । राजा ने
मत का पारण न कर दुर्वासा मुनि से भोजन करने के लिए प्रार्थना की 1
दुर्वासाजी स्लान करने चले गये । वहाँ उन्हे देर हो गई । उस दिस
द्वादशी थोड़ी दी देर के लिए थी और त्रयोद्शी लगने में एक-्ाघ घड़ी
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