कथा - कोश | Katha - Kosh

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Katha Kosh by पी. एल.yadav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है शाल्व शिशुपाल का मित्र था । वह रुक्मिणी के विवाह के झवसर पर बारात में, शिशुपाल की छोर से, गया था । रुक्मिणी-हरण के समय यदुवंशियों ने युद्ध मे जरासन्ध आदि के साथ शाल्व को भी हराया था | तभी शाल्व ने यदुवंशियो के नाश की प्रतिज्ञा की थी । इसी कारण _ उसने झाशुत्तोष भगवान्‌ शंकर को मनाने के लिए उम्र तपस्या की । शंकर के प्रसन्न होने पर शाल्व ने वर माँगा कि मुझे आप ऐसा विमान दीजिए जो देवता, असुर, मनुष्य, गंध, नाग और राच्तसों से भी तोढ़ा न जा सके । विमान स्वेच्छाचारी और यदुवंशियों का नाश करनेवाला हो | तब भगवान्‌ शंकर ने मय दानव से लोहे का “सोभ” नामक विमान बनवाकर शाल्व को दे दिया । शाल्व ने इसी विमान पर चढ़ द्वारका पर चढ़ाई कर दी । प्रयुम्न और शाल्व का घमासान युद्ध हुआ । उन दिसों श्रीकृष्ण और बलराम इन्द्रप्रस्थ गये हुए थे । श्रीकृष्ण द्वारका पर आई चिपत्ति की सूचना पाकर लौट झाये । युद्ध-भूमि में झाये तो शाल्व, झपने मित्र शिशुपाल की स्त्यु श्र रुक्मिणी-हरण को याद कर, कृष्णाजी पर टूट पढ़ा । वहुत देर तक श्रीकृष्ण और शात्व में युद्ध होता रद्दा । अन्त मे भगवान्‌ के चक्र से उसकी स्त्यु दो गई श्यौर उसका दिंव्य विमान भी चूर-चूर हो गया। झंवरीप, दुवासा, सुदशन चक्र, कृत्पा १... सूयवंशी राजा अंवरीप परम प्रतापी झौर भगवान्‌ के भक्त थे । एक बार उन्होंने एकादशी का ब्रत करने का निश्चय किया । एकादशी का ब्रत कर एक दिन वे, द्वादशी को कुछ खाकर, ब्रत पूरा करने ही जा रहे थे +कि दुर्बासा सुनि अनेक कऋूषियों के साथ झा पहुँचे । राजा ने मत का पारण न कर दुर्वासा मुनि से भोजन करने के लिए प्रार्थना की 1 दुर्वासाजी स्लान करने चले गये । वहाँ उन्हे देर हो गई । उस दिस द्वादशी थोड़ी दी देर के लिए थी और त्रयोद्शी लगने में एक-्ाघ घड़ी




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