सब जन हिताय | Sab Jan Hitay
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उद्घोषक :
पुरुष-स्वर :
उद्घोषक
पुरुष-स्वर :
स्त्री-स्वर :
पुरुष-स्वर :
सबजन हिताय , १५
आदि का अध्ययन करने लगे ।
[वंराग्य-सूचक ध्वनि]
रामकृष्ण की हालत दिनों-दिन गिरती गई।
उनके गलेमे वडा कृष्ट था। वह कुछ खा-पी
नहीं सकते थे} एक दिन नरेन्द्र ओर उनके
साथियों ने उनसे कहा :
“आप मां से प्रार्थना कीजिये कि वह आपके कष्ट
को दूर कर दें, आपकी व्याधि को मिटा दें ।”
: बहुत आग्रह् करने पर रामकृष्ण जगदम्बा से
विनती करते के लिए राजी हो गए । कु समय
पञ्चात् शिष्यो ने पूद्ा तो उन्होने उत्तर दिया :
“मैंने मां से कहा था कि मैं कुछ खा नहीं
सकता ! गले से कुछ भी नीचे उतारने में मुझे
बड़ी तकलीफ होती है, तो मां ने तुम सबकी ओर
संकेत करके कहा :
अरे, इतने मुंह से तो तू खाता है।'
अब बताओ इसके आगे मैं क्या कहता !
वाद्य ध्वनि | मंगन-सूचक । उतार-चढ़ाव]
उद्घोषक :
रामकृष्ण समझ गये कि अब उनकी काया
अधिक दिन नहीं चलेगी । सब शिष्य भी जान
गये । अंत समय निकट आ गया । उन्होने नरेन्द्र
को एकान्त मे अपने पास बुलाया । उनके आने
पर वह समाधि में लीन हो गये। नरेन्द्र को अनु- '
भव हुभा, मानो उनके शरीर में बिजली का प्रवेश
हो रहा है। वह कांपने लगे। संज्ञाशुन्य हो गये।
होश आया तो उन्होंने देखा कि रामकृष्ण की
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