सब जन हिताय | Sab Jan Hitay

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Sab Jan Hitay by यशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उद्घोषक : पुरुष-स्वर : उद्घोषक पुरुष-स्वर : स्त्री-स्वर : पुरुष-स्वर : सबजन हिताय , १५ आदि का अध्ययन करने लगे । [वंराग्य-सूचक ध्वनि] रामकृष्ण की हालत दिनों-दिन गिरती गई। उनके गलेमे वडा कृष्ट था। वह कुछ खा-पी नहीं सकते थे} एक दिन नरेन्द्र ओर उनके साथियों ने उनसे कहा : “आप मां से प्रार्थना कीजिये कि वह आपके कष्ट को दूर कर दें, आपकी व्याधि को मिटा दें ।” : बहुत आग्रह्‌ करने पर रामकृष्ण जगदम्बा से विनती करते के लिए राजी हो गए । कु समय पञ्चात्‌ शिष्यो ने पूद्ा तो उन्होने उत्तर दिया : “मैंने मां से कहा था कि मैं कुछ खा नहीं सकता ! गले से कुछ भी नीचे उतारने में मुझे बड़ी तकलीफ होती है, तो मां ने तुम सबकी ओर संकेत करके कहा : अरे, इतने मुंह से तो तू खाता है।' अब बताओ इसके आगे मैं क्या कहता ! वाद्य ध्वनि | मंगन-सूचक । उतार-चढ़ाव] उद्घोषक : रामकृष्ण समझ गये कि अब उनकी काया अधिक दिन नहीं चलेगी । सब शिष्य भी जान गये । अंत समय निकट आ गया । उन्होने नरेन्द्र को एकान्त मे अपने पास बुलाया । उनके आने पर वह समाधि में लीन हो गये। नरेन्द्र को अनु- ' भव हुभा, मानो उनके शरीर में बिजली का प्रवेश हो रहा है। वह कांपने लगे। संज्ञाशुन्य हो गये। होश आया तो उन्होंने देखा कि रामकृष्ण की




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