लक्ष्मी नारायण लाल के नाटकों के पात्र - आधुनिक पात्र प्रतिमानों के सन्दर्भ में | Lakshmi Narayan Lal Ke Natakon Ke Patr - Adhunik Paatr Pratimano Ke Sandarbh Mein

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Lakshmi Narayan Lal Ke Natakon Ke Patr - Adhunik Paatr Pratimano Ke Sandarbh Mein by प्रेमलता - Premlata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूक्ष्म देह के और पाँच महाभूत स्थूल देह के तत्त्व हैं। ` यह अन्तःकरण विकासशील है। इसके क्रिया व्यापार विकसित होते हैं। जीवन में अन्तःकरण (अथवा अनन्‍्तरात्मा) प्राप्त अनुभवों में से सार तत्व ग्रहण कर उन्ही के आधार पर अपने को विकसित करता रहता है। मनुष्य शरीर के नष्ट हो जाने पर जीव के साथ जाने वाले लिंग या सूक्ष्म शरीर के साथ अन्तःकरण के सार तत्व, रा अनुभूति-सार सुरक्षित रहते हैं और जब जीव नया जन्म ग्रहण करता है, तो अनुभूति सार के आधार पर नया अन्तःकरण बनता है, इसमे पूर्वं अन्तःकरण के सार तत्व के आधार काम करते हैं। अन्तःकरण और चरित्र के सम्बन्ध में डॉ0 रणविजय रांग्रा लिखते हैं कि मनुष्य के शरीर मे विद्यमान अन्तःकरण ही एक तत्व वर्गं है, जो मनुष्य की अभिन्नता में भिन्नता लादेने का कारण रहै, जो स्वयं विकासशील है ओर विकास की विभिन्‍न दिशाएँ ग्रहण कर उसे जाति में व्यक्ति बना देता है, उसे व्यक्तित्व प्रदान ` कर देता है। यह अन्तःकरण ही मनुष्य का मूल चरित्र है । कर्मन्द्यो द्वारा प्रकट मानव ` की क्रिया प्रतिक्रिया तो इसका प्रकाशन मात्र है। उसकी क्रियाओं प्रतिक्रियाओं के बारे मे ` निशित अनुमान लगाना असम्भव सा ही दै।। इस विलक्षणता या चरित्र को सीमा से परे मानते हुए अमेरिकन विद्वान लागोस एग्री लिखा दै _ ৬1813 1 01101790161 4 80101 ৮/170959 ৬2100551186 10701 0617 015006160. 01786 50 ६211604 11 | 010735 076 96017011515 01010160105016 90936 19 [77010176117 17016 0171959 01281) धनल. अर्थात्‌ भीतरी प्रकृति जो अन्तरात्मा दै, जिसकी व्याख्या नही কী জা सकती, चरित्र. है। चरित्र की मनोवैज्ञानिक परिभाषाएं :- है मनोविज्ञान मन का विज्ञान है, मानव व्यवहार के विश्लेषण का विन्नान हे। यहाँ + भी मनोवैज्ञानिकों ने चरित्र को परिभाषित करने का प्रयास किया है । वस्तुतः चेतना = `




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