प्रमुख स्मृतिग्रंथों में नारी एक समीक्षात्मक अध्ययन | Pramukh Smritigranthon mein Naari Ek Sameekshatmak Adhayayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म का प्राधान्‍न्य है। इसलिए धर्म के व्यापक रूप की चर्चा जितनी स्मृति अन्थों में है उतनी अन्यत्र दुर्लभ है। धर्म के नाम घर यहाँ बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी गयी धर्म॒धुरन्धरों के मध्य शास्त्रार्थ के गुरुकुलं के शैक्षणिक वातावरण में धर्मशिक्षा का महत्त्वपूर्ण अंश है। सत्यंवद', “धर्म चर' का उद्घोष स्वर्ग-नरक की चर्चा ओर स्वर्ग प्राप्ति के अनेकों मार्ग बताये गये हैं। वैदिक आर्यो की दृष्टि में स्वर्गसिद्धि का मुख्य साधन यज्ञ ही था। अतः एक से एक व्यय साध्य यज्ञ, हिंसा का चरमोत्कर्ष एवं दान धर्म - के विषय में भी धर्मशास्त्रं में बहुत महिमा गायी गई है। भारतीय जनजीवन मे आचार-विचार का, यज्ञ-याग का, दान-उपादान का बड़ा महत्त्व है। ब्राह्मण युगीन आचार विचार की मान्यताओं के समर्थन में ब्राह्मणग्रन्थ हैं और ब्राह्मणग्रन्थों के समर्थन में धर्मसूत्रों का सहारा लिया गया है, फिर ये सभी बातें स्मृतिग्रन्थों में अपना ली गयी है। स्मृतियों की शैली अलग है और समयानुकूल है। स्मृतिकारों ने कर्तव्याकर्तव्य पर खुलकर विचार प्रस्तुत किया और अपने से पूर्व होने वाले स्मृतिकारों की बातों का अन्धानुकरण नहीं किया, जो सिद्धान्त उन्हें अपने युगानुकूल प्रतीत हुए तो उसे सहर्ष स्वीकृत किया जो विचारधारा उन्हें समयानुकूल नहीं प्रतीत हुई उन्हें अस्वीकृत कर दिया। ` प्रथम मानव धर्मशास्त्र मनुस्मृति से पूर्व धर्म और अर्थ को अलग- अलग दृष्टिकोण से देखने की रीति चली आ रही थी। जो राजधर्म एवं... क




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