अविभाज्य उत्तरप्रदेश | Avibhaajya uttarpradesh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Avibhaajya uttarpradesh   by

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राधाकमल मुखर्जी - Radhakamal Mukerjee

Add Infomation AboutRadhakamal Mukerjee

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१५ ३६.५ और बंबई में २९.० है। प्रशासक्रीय व्यप में कमी होना राज्य के राष्ट्रीय समाज सेवा कर्मो के विकास के हित में है । ५. सम्पूर्ण राज्य की जलदाय ओर (सिचाई व्यवस्या के कारण हो पूर्वो और पहद्िचिमी जिलों में ऋश: घान ओर गेहें को व्यायक् खेती होतो रही है । अन्नोत्पादन में इस प्रकार की भिन्नता से उत्तर ग्रदेश को यह लास रहा हैँ कि पूर्वी जिलों तथा आगरा-मयुरा के इलाकों में सुखा, दुर्मिक्ष अथवा बाड़ से जो हानि होती है उराझी पूति हो सकती हे । उत्तर प्रदेश को आथिहू सुदृइ़ता भी यहां के क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार की खेती ओर सिचाई के विभिन्न साधनों पर निर्भर करती हे क्योंकि थे एक दूसरे के प्रक हैं । ६. पश्चिमी उत्तर प्रदेश आज इतना सम द्धशालो गेहूँ उत्पादक क्षेत्र न होता बल्कि मध्य प्रदेश की तरह यहां केबल मोटे आवज को हो उपज होतो यदि यहां पर गेगा-पमुता नहर त्रणालियां जेसों महत्वपूर्ण (सबाई-साथनों का आविर्भाव नहुआहोता जो संसार के सर्बत्तम सिलाई साथनों में से एक है । १९ वी शताब्दी के सध्य से इस सिचाई प्रणाली के निर्माण पर अपार धनराशि व्यय की जा रही हैं और हाल में पच्चिहमो उत्तर प्रदेश में विद्युत विकास योजनाएं भो लागू की गयी हूँ जिससे राज्य का यह भाग अरेर भी सनुद्धशालों हो गया है । कृषि, सुरक्षा और समृद्धि के साथ-साथ यह भाग अनावृष्टि ओर दु्भिक्ष के कृप्रभावों से मुक्त हे, और इसका कारण यही है कि एक दूसरे के लाभ के लिए दोनों क्षेत्रों के लाघनईं का उपयोग किया जात रहा हैँ । अतः उत्तर प्रदेश के विभाजन की सांग करना अनुचित ही नहों असंगत भी हैं । क्योंकि बह धनराशि जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विकास पर खर्च की गयी यदि पूर्वी जिलों के, जहां पर्याप्त वर्षा होती हैँ ओर कुंओं द्वारा (तियाई की व्यवस्था भो हैँ, [साई और जल-विद्युत विकास पर की जाती तो पश्चिमी जिलों को अपेक्षा ये जलि अधिक सम्पन्न हो जाते । ७. गंगा-यम॒ ना जैसे मैदान सें कृषि, सिबाई तथा बिजली विकार की योज- नाएं पूरे प्रदेश को एक इकाई के रूप सें घानकर बनायो एवं कार्पान्वित को जानी ही लाभंकर है । गंगानहर हरद्वार से आरंभ होती है और इसकी शाखाएं पूर्व सें कानपुर और इटावा तक फंली हुई हैं । शारदा नहर प्रणाली का विस्तार पौलो- भीत से प्रतापगढ़ ओर पूर्व में जौनपुर तक है । सिचाई वाले क्षेत्रों के संबंध में नदियों के प्रवाह की अनुकूल तथा प्रतिकूल दिज्ञाएं और नहर क्षेत्र हो संघर्ष




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now