प्रमाण विवेक | Praman Vivek

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Praman Vivek by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रभाणविधैक ३१३ से यांवपप्रयैश बिना च्यातति शषानांदिकं से जो अनुमिति होती है उछ के! स्थार्थातुमिति कहते हैं। उसके करण व्याप्ति शानादिक থা घुमान कहलाते हैं जहां दे। पुरुषोंका विवाद है। पहां चह्िनिश्चयधाला पुरुष अपने अंतिवादी की निवृत्ति फे लिये जो धार्षव प्रयोग करे उसे परराथातु- मान फहते हैं अर्थात्‌ स्वार्थ और परार्थ सेंद से अनुमान दे! प्रकोर फा है। न्यायसाध्य-के परार्थ कद्दते हैं। अवयवसमुदाय का नाम न्याय है! अवयव .सीन ही प्रसिद्ध हैं१-प्रतिशा २-देतु ३-उदा- हरण । अ उचा १-उदाह. ण २-उपनय ३-निम्मन । ज्यायशपरत्रगत पांच अवय॑व वेद्रान्त में नहीं भाने जाते। लदाहरण- न्याय फे अनुसार भी । ४ परबतेवहिमान्‌ घूमात्‌। ये।ये। धघृमबान्‌ सेऽग्निमान्‌.धयीमहानसः > 1 इतने धाक््य कै प्रयोग से अनुमान -की सिद्धि हो सकती है | इस में तीन अवान्तर ,चाक़्म हैं ।.उन फे क्रमशः प्रतिशद्क नाम हैं । साध्यविशिष्टपक्ष का बोधक জঙ্গল प्रतिशयवक्य फहलाती है ॥ ऐसा ^ पंचेती धहिमांन ?-थद खाक्व है । वह्विशिष्ठ पर्वत है । ऐसा बोध इस वाक्य से होता है। वहा विं ध्य है पव॑त पश्च दै । प्रतिष्ावाकयं से उत्तर जौ लिहः আমন धचन'उसे हेतु वार्वय कहते है । ইলা धमात्‌ वं घाक्य है। शेतुखाध्य का संचार धोधक जो टहृष्टान्त प्रतिपादक वचन उसे उदादरण धौरकेप कहते दै । घादि प्रतिधादी का 'লহাঁ -विवाद नदो किन्तु दोनों का निणों ते अर्थे जहां हो चद हृष्टान्त कहलोता है । इस रीति खै भरविक्षादिक तीनो का समुदाय रूप महावाक्य से विवाद की निवृत्ति'होती है। मंहाधाक्य खुन कर थदि भ्रतिधादी आम्रह करे अधवा व्यभिचार क्षी द्धा करे ता तक्ष से ही उस फी निन्ृत्ति करनी चाहिये | ईस हेतु प्रमाण का सदकोसे तं है 1 इस रीति से




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