फिर निराशा क्यों | Fir Nirasha Kyu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जो मनुष्यों को अपने कर्तेंग्यकार्या में कटियबद्ध होने की उच्तेज़ञना हे और अनिकार्य आपत्तियां और ক্ষত্তিলা- दयें का प्रसन्नता पचक सामना करने को उदच्चत करे, जे मनुष्यों को दुःख और शो की तुच्छता बता कर उनके सुख और आनन्द की मात्रा की तृद्धि करे; वह पुस्तक निःसन्‍्देह परमापयेगी है, और उसके लेखक का परिश्रम सफल ही नहीं हैं बल्कि अति सराहनीय श्रौग स्नुन्य है) श्राश्षा द कि इस पुस्तक का सवं साधारणम यथोचित दर ভাবা, जिसस कि याग्य लेखक इस प्रकार के ध्यन्य ग्रन्थ लिम्बन को प्रोत्साहिन हैं । ध्रोलपुर है वि २५--५-- १९१ न्नासल, एम. ए, री १




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