ओरंगजेब | Orangjeb

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Orangjeb 1618-1707 by Sir Yadunath sarkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है...) श्रलग खड-राज्य स्थापित होने लगे श्रौर मुगल-साम्राज्य छिन-भिन्न होनेको ही था । साम्राज्यका नैतिक पतन भौतिक पतनसे भी श्रघिक भयकर था । लोगोकी निगाह मुगल-साम्राज्यके प्रति झ्रादरका भाव नाम-मात्रको भी नहीं रह गया था, सरकारी कर्मचारी ईमानदारी व कार्य-कुषलता सर्वेथा खो चुके थे, मत्रियों श्रौर राजाद्रों दोनोंमे ही झासन-पटुताकी पूरी-पूरी कमी थी, सेना विलकुल निस्तेज तथा वलहीन हो चुकी थी । इस सर्वव्यापी पतनका कारण क्या था * सम्राट न तो व्यसनी था श्रौर न वुद्धिहीन या श्रालसी ही । उसकी मानसिक सतकंता प्रसिद्धथी । वह राजकाजमे उसी लगनसे काम करता था जो अ्धि- कतर मनुष्य विपय-भोगोमे दिखाते हैं । घार्मिक पुस्तकों या श्राचार विचारसवबधी ग्रथोमे समूद्दीत मानवीय ज्ञान तथा विद्याके भडारपर उसने पुर्ण श्रधिकार प्राप्त कर लिया था । साथ ही अपने पिताके यासन-कालमे उसे युद्ध तथा कूटनीतिकी पूरी-पूरी शिक्षा भी प्राप्त हो चुकी थी । फिर भी ऐसे सम्राटके ५० वर्पके जासनका परिणाम निकला पूर्ण असफलता श्रौर घोर भ्रशार्ति 17 यही राजनतिक विपमता उसके झासन-कालकों राजनीति श्रौर भारतीय इतिहासके चिद्यार्थीकि लिए चहुत ही ध्िक्षाप्रद तथा चित्ताक्पंक वना देती है । २. श्रौरंगज्ेबके जीवनकी दु.खांत कहानीका विकास .श्रौरगज़ेवका जीवन एक लम्बी दु खात कहानी थी, वह एक ऐसे मनुष्यकी कहानी थी, जो जीवन-भर श्रदृद्य परतु निप्ठुर कठोर भाग्यके साथ श्रसफलतापूर्वक लडता ही रहा श्रौर जिसने यह दिखा दिया कि किस प्रकार कठिनसे कठिन पुरपार्थ भी समयके चक्फे सामने विफल ही होता है । ५० वर्पके कठिन थासनका शभ्रत घोर श्रसफलतामे ही हुमा, तयापि बुद्धि, चरित्र श्रौर साहसमे श्रौरगजेव- का स्वान एशियाके वडेसे वडे घासकोंमे है । उतिहासके उस दु स्दात




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