संजीवनी विद्या | Sanjeevani Vidhya

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Book Image :  संजीवनी विद्या - Sanjeevani Vidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है। इसी कारण झुछ समय तक उसके. दावों जौर पैरोंदो गौर साय ही उसके मचको भी उतनी शक्ति प्राप्त नहीं होती, जितनी साधारणतः होनी करने छगती है। यदि इच्छा उसी समय पूरी या तू कर छी जाय, तो वह दारीरकी अमूल्य शक्तिका क्षय करती है और यदि दूत न की जाय, तो भी अन्यान्य समस्त इच्छाओंके समान वह केवल अपने स्फुरणात्मक '.अस्तित्वसे ही और. अस्तित्वके लिए ही दरीरकी बहुतसी शक्ति जछाकर राख प्रज्ञाहरा तुंडी सयः घज्ञाकरा बचचा। चाकिहरा नारी सच्यः दाकिकर पय ॥




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