विधवा विवाह और जैनधर्म | Vidhava Vivah aur Jain Dharm

Vidhava Vivah aur Jain Dharm  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९९) समाधान--स्पीवेद्‌ के उदय से विवाहादि की सूती है- शापक की यद यान पाटक्त ध्याने रकं कयौसिश्रागे इसी याकय केः विरोध म स्वयं अगन्तेपक ने वक्षवाद्‌ शिया ई । सोर, 'स्वीयेद दै उद्य से विवाद की नहों, सम्भोग को हच्छा होती है। सम्भोग की इच्छा द्वोने पर अगर अप्रत्याख्याना- चरण का उदयाभावी क्षय होता दै तो वद्द अखुधत घारण कर किसी कुमारी से या विधवा से विवाद कर लेता है। अगर शछप्रत्यास्यानाधर्ण का उदयानावी कज्ञय न धोकर उदय ही द्ोता है तो घह ध्यभिचारी द्वोने की भी पर्वाद नहीं करता । सेद का उदय तो विवाद और ध्यमिघार दोनों फे लिये समान काग्ण॒ है, परन्तु श्चपरत्याख्यानावगण का उदयक्तय, श्रवा . अत्पस्यानावरण फा उद्य, व्यभिचार से दूर रख कर उसे घियाहद के बस्धन में रखता है। इसलिये विधादके लिये श्रप्रत्या- स्यानांघरणके उदयाभावी च्तय का नाम विशेष रूप में लिया जाता है| येचारा ग्राद्देपक इतना भी नहीं समभता कि किस कम प्रकृत्तिका कार्य फ्या हैं ? फिर भी सामना करता चाहता हैं| आाश्यय ! आत्तेप (ऋ)--गाजचातिक़के विधाद् लक्षण में जैसे कन्या का माम नहीं है पैसे ही रुती पुरेप का नाम नहीं हैं | फिर रूपी पुरुष का धिघाद्ट क्‍यों लिजा ? स्त्री स्घरी का क्‍यों न लिखा ? समाधान “राजपधारनिक वे: वियादह लक्षणर्मे चारिष्र मोद्द के द्रप का उदलेल है ! चारित्र मोह में स्त्रीवेद पुर्यवेद भो & 1 स्त्रीयेद फे उदय से स्प्रो, रुद्ठी को नहीं चाहइती--पुरुप को चाहती है। और पुरुषयेद के उदय से पुरुष, पुरुष को नहों चाहता-स्थी को चाहता है 1इसलिये वियाह के लिये रुत्री और पुरुष का धोना झनियाये है। योग्यता की दुद्वाई देकर यद नहीं बद्दा ज्ञासवता कि स्त्रीयेद के उदय से कुमार के हो साथ रमणु




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