पूर्वी उत्तरप्रदेश में राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान साम्प्रदायिकता का विकास (1890-1947) | Purvi Uttar Pradesh Mein Rashtriya Andolan Ke Dauran Sampradayikta Ka Vikas (1890-1947)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डन साहित्यकारो मे पृष्ठभूमि के रूप मे भारतेन्दु के उस स्वर को पहचानने की कोशिश होगी जिसमे वे राजभक्ति एव देशभक्ति कं दो धुवो पर लेखन कर्म करते हुये जातीय आग्रह के भाव से मुक्त नही हो पाते | इसी प्रकार हरिओध का साहित्य आद्योपान्त जातीयता एव हिन्दुत्व के दायरे मे घूमता है। प्रेमचन्द जन साहित्य के पुरोधा थे। इसी दृष्टि से साम्प्रदायिकता एव उस पर उनके प्रहार को उनके साहित्य के माध्यम से देखने की कोशिश होगी। जयशकर प्रसाद प्राय ऐसा चित्रण करने से अपने साहित्य को बचाते रहे है लेकिन बच नही सके है । सम्भवत एसा उनकी शान्त एव अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के कारण था | निराला इस सन्दर्भ मे अपने नाम के अनुरूप ही हैं, उनके साहित्य मे तमाम ऐसे उद्धरण हैं जहाँ उन्होने इस विषय पर पूरी बेबाकी के साथ अपनी बात कही है। श्याम नारायण पाण्डेय की रचनाये हिन्दू आख्यानो पर आधारित है और उस समय प्रकाशित हुई है जबकि राष्ट्रवादी भावनाओ के साथ--साथ साम्प्रदायिक राजनीति भी अपने चरमोत्कर्ष पर थी | इन बिन्दुओ के परिप्रेक्ष्य मे ही इन साहित्यकारो के विचारो का विवेचन होगा । साथ ही उन बिन्दुओ पर भी दृष्टि डाली जायेगी जहाँ इन साहित्यकारो द्वारा साम्प्रदायिकता जैसी नकारात्मक मनोवृत्ति पर प्रहार किया गया है तथा सामजस्य स्थापित करने की कोशिश की गयी है। शोध प्रबन्ध के चतुर्थ अध्याय मे पूर्वी उत्तर प्रदेश की सामाजिक--आर्थिक परिस्थितियो के विवेचन के साथ ही उन स्थितियो की चर्चा होगी जिनसे साम्प्रदायिकता का निर्माण एव विकास हुआ | हिन्दी--उर्दू विवाद एव गोरक्षा आन्दोलन ने कैसे साम्प्रदायिक स्थिति को जटिल बनाया साथ ही परवर्ती चरण मे काग्रेस मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा एव अन्य छोटे दलो एव उनके नेताओ की गतिविधियो एव क्रियाकलापो का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने का प्रयास कियागया है| पचम अध्याय मे विभाजन के तुरन्त बाद की स्थिति को विश्लेषित करने का प्रयास होगा | इसके लिये जनसख्या, विचारधारा, मन स्थिति, आर्थिक एव जन हानि-लाभ को दृष्टि मे रखने का प्रयास होगा । यहाँ मैने पुन तत्कालीन साहित्य के साध्यम से लोगो की मनः स्थिति एव उससे उठती प्रतिक्रिया को देखने का प्रयास किया है| शोध प्रबन्ध के अन्तिम अध्याय मेँ साम्प्रदायिकता के निर्माण उसके विकास कै प्रमुख घटको एव उपादानो का जो विश्लेषण पिछले अध्यायो मे किया गया है, उनके सन्दर्भ मे एक सतुलित दृष्टिकोण के साथ निष्कर्षं पर (19)




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