ह्वेनसांग की भारत यात्रा | Hensang Ki Bharat Yatra

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Hensang Ki Bharat Yatra by Hensang

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह्लेनसौंग का भारत यात्रा रु प्राचीन काल से लेकर अब तक कोई भी कूँआ इस नगर मे नहीं बनाया गया है । यहाँ के रहनेवाले उसी अजगर भील से पानी लाकर पीने हैं । जिस समय ल्रियाँ पानी भरने कील को जाती था उप्त समय थे अजगर मनुष्य का स्वरूप घारण करके उन ख्ियी के साथ सहवास करते ये । उनके बच्चे जो इस प्रकार पैदा हुए वह धोडों के समान चचल साहसी और बलिष्ट हुए । धोरे घीरे सपूण जन-समुदाय अजगरों के वश का होकर सम्यतता से रहित हो गया और अपने राजा का सत्कार विद्रोह और उपद्व से करने लगा । तब राजा मे तुहक्यूद की सहायता से नगर के दूढे बच्चा समेत सब मनुष्यों का ऐसा सहार किया कि एक भी जीता न बचा । नगर इस समय बिलकुल उजाड और सुनसान है । इस उजडे मगर के उत्तर की ओर कोई ४० ली के अन्तर पर एक पहाड़ की ढाल पर दो सघाराम पास पास बने हुए हूँ जिनके बीच में एक जल की धार प्रवाहित है । ये दोनो सघाराम एक दूसर के पूर्व-पश्विम की ओर हैं जिसके कारण इनका नाम चोहूलों पढ़ गया है । यहाँ पर बढहुमुय वस्तुओ स आशभूपित महात्मा बुद्ध की एक मृूत्ति हैं जिसकी कारोगरी सानुपी समता से परे है। सपाराम के निवासी पवित्र सत्पात्र और अपने घर्म मे कट्टर हैं । पूर्वों सघाराम बुद्ध गुम्बज के नाम से प्रमिद्ध है । इसमें एक चमकोला पत्थर है जिसका ऊपरो भाग लगभग दो फोट है और रंग कुछ पोलापन लिये हुए सफेट है । इसकी सूरत समुद्रो घोधे की सी है । इस पत्थर पर महात्मा बुद्ध वा चरणबिह एक फुर आठ इच लम्बा ओऔ आठ इंच चौड़ा बना हुआ है । प्रत्येक ब्रतोत्मव का समाप्ति पर इस चरणचिह मे से चमक और प्रकाश निकलने लगता है । मुख्य नगर क॑ पश्चिमी फाटक के बाहरी स्थान पर सडक के दाहनी और बाई दोनो बोर करीब ६० फोट ऊचो महात्मा बुद्ध को हो सूतियाँ वनों हुई हैं । इन भूतियों के आगे मेदान में बहुत सा स्थान पद्चवाघिक महोत्मव किये जाने के नि 11 तुक 1 21 नर्यात्‌ पूर्वी चौहूली और पश्चिमी चौहूली । चीहूली शरद का ठीक ठीक बोर एक शब्द म अनुदाद होना कठिन है । ली का अथ है दा मथवा ज डा भौर चौहू का भय है सुय क प्रकाश का आपित अर्याद्‌ प्रकाशाश्रित युग्म । कदाचितू इन दोना मैं बारा बारी स सूय क उत्य और अस्त का प्रकाश पहुँचता था इसो लिए ऐसा नामकरण किया गया है 1 3 यह अगोक ने कायम किया था ।




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