हमारे किसान का सवाल | Hamare Kisan Ka Sawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किसानों का सवाल 1 ९१४ धरती का भार इस समय हिन्दुस्तान की खेती का खास लक्षण यह है कि बहुत अधिक लोग उसी पर गुज्ञारा कर रहे हैं । इसका नतीजा यह हुआ है कि खेती की ज़मीन के बहुत ही छोटे-छोटे टुकड़े हो गए! हैं और उनसे गुज्ञर होना अत्यन्त कठिन हो गया है। १८८० के अ्रकाल कमीशन ने यदह्द राय दी थी कि “ज़मीन की पूरी काश्त के लिए जितने लोगों की वास्तव मं जरूरत है उससे बहुत अधिक लोग खेती करने लग गए हैं । और उनके पास दसरा कोई धन्धा नहीं है ।? नीचे लिखे अंकों से यह बात ज्ञाहिर होगी किं उस समयसे धरती पर श्राबादी का भार कितनी तेजी के साथ बढ़ता रहा है । १८८१ मे ५८ फीसदी लोग खेती पर निभर रहने वाले थे | यह संख्या बढ़ते-बढ़ते १८६१ में ६१.०६, १६०१ में ६६.५ और १६२१ मे ७१.६ हो गई । खेती सम्बन्धी शाही कमीशन का खयाल है कि ७३,६ फ्रीसदी लोगों की गुज्ञर खेती से होती है । यह बात ध्यान देने लायक़ है कि यूरप के बहुत-से देशों में खेती में लगे हुए लोगों की संख्या इस काल में बराबर घटती गई हे | इस तरह फ्रांस में खेती पर गुज्ञर करने वाले लोगों का श्रनुपात १८७६ श्रोर १६२१ के बीच में ६७.६ से घटकर ५३.६ रह गया, जमनी में १८७४ ओर १६१६ के बीच में ६१ से ३७.८ द्वो गया; इंग्लेएड और वेल्स में १८७१ और १६२१ के दरमियान ३८-२ से २०.७ हो गया और डेनमाके में श्य्प्०ण और १६२९ के बीच में ७१ से ५७ फ्रीसदी रह गया।- ! याद रहे कि ४० बरस पहले भारतवष में खेती करने वाले लोगों का अनुपात फ्रांस, जमंनी और डेनमाक से कम था | मगर जहाँ यूरप के ये देश बराबर उद्योग धन्घे बढ़ाते रहे शोर अपने यहाँ ज़मीन का बोभा




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