हिन्दी-धातु संग्रह | Hindi Dhatu Sangrah

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Hindi Dhatu Sangrah by DR Hornli

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह्विन्दी-घातु-सग्रह व्युत्पत्ति श्रौर वर्गीकरण १ १२४ दाह (जलाना ) नस ० दह, प्रेरणार्थक दाहयति, प्रा० दाहेद या छठवें वर्ग में दाह, हि दाहै । १२५ दिस्‌ (दिखाता) *>स ० दिदू, छठवें वर्ग मे--दिशति, प्रॉ० दिसइ, हि० दिस । १२६ दिस या दीस्‌ (प्रकट होना) न्लस ० दुशू, कमंवाच्य दृश्यते, प्रा० दिरसइ या दीसइ (हेमचन्द्र ३,१६१) हि० दिस या दीस 1! १२७ दे (देना) न्लस ० दा, कर्म वाच्य दीयते, प्रा० देइ ((0०४८105 पता प्राक्त प्रकाश, पू० ९९, हेमचन्द्र ४,२३८) हि०्देय या दे । सम्भवत छठव वर्ग में दइ (सप्तदा तक ५,२१६) हिं० 66८४ १२८ देखू (देखना) नस ० दुशू भविष्य द्रब्यति (वर्तमान के भाव में प्रयुक्त) प्रा० देव्खइ (हेमचन्द्र ४, १८१) हिं० देखें । १२९ घर्‌ (रखना, पकडना) न्ल्स० घू, प्रथम वर्ग घरति या घरते, प्रा० घरइ (हेमचन्द्र, ४, २३४) हि घरे । १३० घस्‌ या घसू (डूवना, घुसना) नन्स० ध्वस्‌ू, प्रथम व्ग--ध्वसते, प्रा० घसइ या घसइ (पिंगल, राजेन्द्रलाल मित्रा, पु० ११८ में 'घावति” का स्थानापन्‍्न बताया गया है) हि० घसै, घर्स । १३१ घार्‌ (0010) न्स० थू, प्रेरणाथंक घारयति, प्रा० घरेइ या छठवाँ वरग-घरइ, ह्ण्घरे। १३२ थधो (घोना) न््स० घावू, प्रथम वर्ग-घावति, (या घू, छठवाँ वर्ग-घुवति) प्रा० घोगइ (12शापड रिवताट८5 शिघटापत्थ८, पूृ० ७८) या घोवइया घृश्् (सप्तशतक, ४, १३३, २८३) या घुवद (हेंमचन्द्र ४, २३५८) हि घोए या घोरवे । १३३ नदु (नाचना) न्> इगको व्याख्या यौपिक घातुश्नो में देखिए । १३४ नवू या नौ (9६णते, 90४) स० नम, प्रथम वर्ग नमति, प्रा०/ नमइ (देखो- हेमचन्द्र १, १८३ नमिम) या नवइ (हेमचन्द्र, ४, २२६) हि० नवी, नौए । १३५ नवाव या निदाव (9600, णित) स० नम, प्रेरणार्थक नमयति, प्रा० नवावेंइ या छठवाँ वर्ग-नवावइ, हि० नवाव या निवावै । १३६ नहा (नहाना) >स ० सना, द्वितीय वर्गे-स्ताति, प्रा० चतुर्थ वर्गें ण्हाद्रइ (12८1105 के 2ताएटड रिघटापतिटघ6, पुर २०) या (सकुचित) ण्हाइ (हेमचन्द्र ४, १४) हि० नहाय 1 १३७ नाच (680८९) नस ० नृत्‌, चतुर्थ वर्ग, नुत्यति, प्रा० नच्चइ (वररुचि ८, ७, हेमचन्द्र ४, २२५) हि० नाच । १३८ चिकालू या निकार्‌ (वाहर खीचना) न्लदेखि यौगिक घातुए । १३४६ निकास्‌ >नस० निसू-कसू, प्रेरणाथक-निष्कासयत्ति, प्रा० निककासेड या छठवें वर्ग में निक्कासइ, हि० निका्से ।




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