हिंदी गीतांजलि | Hindi Geetanjali

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Hindi Geetanjali by श्री रविन्द्रनाथ ठाकुर - Shree Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी गीताञ्जलि ] { २१ १५ मैं प्रेम के कर कमलों में आत्मसमपंण करने की प्रतीक्षा फर रहा हूँ। इसी से इतनी देर हुई है ओर इतनी त्रुटियां हुई हैं । लोग अपने विधि विधानों से मुके जकड़ने के लिये आते हैं, किन्तु में उन्हें सदा टाल देता हूँ. क्योंकि में तो केवल प्रेम के करकमलों मे आत्मसमपण करने के लिये उसकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ । लोग मुझ पर दोष लगाते हैं ओर मुझे असावधान कहते हैं। वास्तव में वे ठीक कहते हैं । हाट बेला बीत गई ओर कामकाजियों का काम समाप्त हो गया। जो मुझे व्यर्थ बुलाने आये थे, वे क्रोधित होकर लौट गये। क्‍योंकि में तो केवल प्रेम के कर कमलों में आत्मसमपंण करने के लिये उसकी प्रतीक्षा कर रहा हू ।




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