महाकवि अकबर और उनका उर्दू काव्य | Mahakavi Akbar Aur Unka Urdu Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
193
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उदु कविता ३
बात यह है कि फ्रारसी, अरबी तथा उदू के कवियों ने शराब की
प्रेम से उपमा दी है। शरात्र पीने पर आदमी के होश हवास ठीक नहीं
रहते । प्रम में भी ऐसा ही होता है। प्रत्येक समय प्र म-पात्र का चित्र
आंखों के सम्मुख रहता है ; उत्तके अतिरिक्त ओर किसी बात का ध्यान
ही नहीं आता । कोई उपदेशक या मित्र कितना ही क्यों न समाय;
कुछ समभक हो मं नहीं श्राता। उपदेशक के उत्तरम प्र मो्मत्त यह ही
कष्टता हैः--
इतना ता बतादे मुझे ए नासहे-मुशपिक्र।
देखा है कि उस महे-लक़ा को नहीं देखा ॥
प्रेम तथा शराब के प्रभाव में इतनी ग्रधिक समता द्वाने के कारण
शरात्र प्र म का ऐसा उपमान हो गया है कि जहा कहीं शरात्र की प्रशंसा
है वहां शरात्र से प्रम का मतलब्र है। केवल इतना दी नहीं वरन्
शराब-सम्बन्धी अन्य पदार्थ भी प्रम हो के द्योतक हैं। उदाहरणतः
साक़ी (शराब्र पिलाने वाला) से माशूक का मतलब्र होता है। मद्दाकवि
ग़ालिब ने एक स्थान पर साफ़ तोर से लिखा है :--
हरचन्द हा मुशाहदये-हक़॒ कौ गुफ्तगू।
बनती नरी ই बादश्रोा-मागिर कदे बगेर ||
अर्थात् चाहे ईश्वर-दशं न ही का विषय क्यों न हो, किन्तु फिर भी
कविता में इस विषय पर लिखने के लिये शरात्र और प्याले का वणन
करना ही पड़ता है |
आकाश ।
उदू कवियों का विचार है कि आकाश सदेव घृमता रहता है। यह
किसी मनुष्य को सुखी नहीं देख सकता | हमारे सारे दुःखों का कारण
आकाश ही है। इस कारण प्रत्येक उदू कवि ने ग्रासमान को दो चार
जली कटी अ्रवश्य सुनाई हैं :--
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