बेचारे अंग्रेजों की विपता | Bechare Angrejon Ki Vipta

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Book Image : बेचारे अंग्रेजों की विपता  - Bechare Angrejon Ki Vipta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आप बीती पहली कहानी हिन्दोस्तानो पेदलोां की ३० नम्बर के रेजिर्मेन्ट का एक अफसर अपनो सुसोवतां का दाल इस तरह बयान करता है - ११ तारीख को क़रीब १०॥ बजे सुत्रह मेरा नौकर भागता हुआ मेरे कमरे में आया और नहायत घत्रराहट से कह्दने लगा कि शहर में बहुत खलबली मच रही है और लॉग कह रहे हें कि मेरठ के तमाम भारतीय सिपाह देहली पर श्रधिक्रार करने के लिए बढ़े चले आ रहे ह । इस फसाद की जो सबसे पहली ख़बर मेंने सुनो, वह यही थो | चूँकि मेरा बँगला छावनी ही में था; इसलिए में यह समाचार सुनते ही ३८ नम्बर की हिन्दुस्तानों रेजिमेन्ट के एडजूटेएट इन्साईन कमियर साहब के बँगल की तरफ पेदल चल दिया । वहाँ जाकर मेंने देखा कि कमारिडड्र अफसर और कनेल न्यूट साहब--दानो मौजद हैं. और उन्होंने भी मेरे समाचार का समर्थन किया और कहा कि हिन्दुस्तानो पेदलो को एक रेजिमेणएट नम्बर ४५ तोपो सद्दित शहर में भेजी गई है और नम्बर ३८ व ७४ रेजि णएट कीदा कम्पनियों पहाड़ी पर, जो शहर और छावनी के बोचमें है, पढ़ाव डालेंगी। इन रेजिमेण्टों के शेष सिपाद्दी किसी दुसरे स्थान पर न भेजे जायँगे ; पर अपनो छावनो में उन्हें हर समय हथियारों से लेस और तैयार रहना चाहिए। जब में कमारिडड्ग अफ़सर के बंगले से वापस हुआ, तो




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