चिकित्सा चंद्रोदय प्रथम भाग | Chikitsa Chandrodaya Vol - I

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ायुर्वेद का अतीत झार 1... । ढ़ करते थे ओर झपने दरबार मे विद्वान्‌ वेद्यो को रखते थे। इसी से ायुवेद-विद्या की सत्यु नही हुई वदद जीवित बनी रही । हाँ उसका चह गौरव उसकी वह महत्ता न रही । मुसलमानों के झत्याचारी शासनका अन्त होने पर--न्यायप्रिय प्रजावत्सला न्रिटिश गव्नेमेरट इस देशकी मालिक हुई । ब्रिटिश-शासनमे अट्टरजो ने हमारे शास्त्रोका अज्रेजी भापामे उल्था करवाया । निवासियों ने अविश्रान्त परिश्रम झोर उद्योगसे अच्छे अच्छे रत्न चुन लिये झोर अपनी चतुराइसे उनका रूपान्तर करके उन्हे पहलेसे उत्तम बना दिया । यहाँसे ही हजारों दवायें विलायत लेजा-लेजाकर उनके सत्त पोडर गोली टिचर तेल बना-चनाकर उनको सनोमुग्ध- कारिणी शीशियो और डिल्वियोमे वन्द करके उनके ऊपर रज्ञीन लेबल ोर विधानपत्र लगा-लगाकर यहाँ भेजने लगे । इससे शक नदी कि उन्होंने यद काम वढ़े कठिन परिश्रम ओर झध्यवसायसे किया इसलिए वे किसी प्रकारसे दोप-भागी नहीं । यह तो मनुष्यका घर्मे ही है । दोप- भागी हम शोर हमारे पिछली सदीमे हनेवाले पूव्वे-पुरुष है जो ालसी की तरह दाथ पर हाथ धरे बेठे देखा किये । झव जवकि रोग एक दम असाध्य हो गया तब झॉखे खुली है और अब उन्नति-उन्नति कह कर लोग चिललाने लगे है। मगर व चू कि रोगने घर कर लिया हे इसलिए वह सहजसे जा नहीं सकता । व क्या दशा है? सुनिये --जगदद-जगहद खैराती छास्पताल खुल गये है। मुफ्तमे इलाज होता है साधारण रोग सहदजमे झाराम हो जाते हैं। दवाओं के कूटने-पीसने ओर काढ़े वगैरः के ौटाने छानने की दिक्कतें मिट गयी है इसीसे झव सब लोग उधर ही दल पड़े हैं । झख-चिकित्सामे डाक़रोके हाथ की सफाई देखकर तो यहॉँके लोगोने डाक्टरोको धन्वन्तरिका बाबा ही समभा लिया है। सबको यह विश्वास हो गया है कि यूरोपीय चिकित्साके मुक्नाबलेमे आायुर्वेदीय चिकित्सा कोई चीज़ नहीं ।




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