प्रेम तीर्थ | Prem Teerth

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Prem Teerth  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निम्रन्द्रण १९ देखा तो चिन्तासणिजी फेक को गोद में लिए कुछ पू रहे दै 1 रूपक छर लठके का ्ाथ पकड लिया और ष्दा्ा कि उसे अपने सिन्र फ्री गोद मे छीन लों। मगर चिन्तामणित्नी को अभी झपने भश्न का उत्तर न मिला था। प्तएव वे छडके का हाथ छुडा कर उसे छिए हुए अपने घर की ओर भागे । सोटेराम भी यह कहते हुए उनके पीछे दौढे-“उसे क्‍यों लिए जाते हो | ध्रूत कहीं का, दुए ! विन्तामणि में कहे देता हूँ, दका न्या छच्छ न दोगा, फिर कमी किसी निमनन्‍्त्रण में ने जागा । बला षाष्ते हो तो उसे उत्तार दो । मगर चिल्तामणि ने एद न सुनी । भागते ही घले गए। उनकी ই জী संभाल फे याहर नहुई थी दौड़ पकते थे, मगर सोटेरामजोी को एक एक पग श्रमे घटना दुरूर तो रदा था । ससे की भति हफ्ते थे घोर नाना प्रफार के दिशेषणों फा प्रयोग करते दुल्की चाल से घछे जाते थे, थौर ययपि प्रद्िक्षण घन्तर बटता ज्ञाता था, एर पीछा न छोडते थे। भच्छी घुड- दोट की । गगरके ठो मतत्मा दौढते हुए पेसे जान पठते थे, मानो दो रटे विशि षर सेभाग पाए र्ि। सैकर्दों घादमी तमाशा देखने टे । दितने ही पालक उन्कै पदे तालियां दजाते हुए ठौडे । कदादित्‌ पट दोद पण्टित विन्दामणि के घर ही पर समाप्त होती, एर पषण्डित मोस घोती के टीछी शो जाने के छारण शल्ककर गिर ए2 । चिन्ता- লাফ ले पी: फिर दर यह दृश्य देखा, तो रह गए फ्ौर फेक्राम से एस~-ष्र रेरा ष्ट नेध्दा ऐ ? ऐप्-दण हें तो एप मिदाहँ दोये न ! चिन्ह देगा दन्ास्ने। प~, र स्र {2-7ा~-स्ं सौ सन्ती




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