कामिनीकुसुम नाटक | Kamini Kusum Natak

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Kamini Kusum Natak  by हरनारायण चतुर्वेदी - Harnarayan Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- चौकी न्‌ साँटा उठाकर पंतरे से चलता हुआ ) हां रे यही পাছে | तो हमारा काम हे कि जो इस विद्या के पंडित हा उन्हे हम ॐ वेखी पुरस्कारद। ` ध ४; क्स०-क्या प्ररस्कार देता हे । चौंकी०-इस विद्या के प्रस्कार के छेत एक यंच बना हे । जि- | सका नाम - काठ, -लड़म, ओर चोर शत है । कस०-केसा ? | ˆ ˆ चोकी०-दो बड़े २ काठ खकच करके चोर भादे का पांव उस | | के भीतर डाल देते है | कुसम का दहिनों पेर बलसे खींचकर | अपने दोनो जांघ में रखकर दबाता हे | अब. जबतक हमारी | पजान दोगे तबतक नदधटोगेि। . ट | कुस०- चौकीदार को बल प्र्ब॑क लात मारता हे ओर चोकी | | दार प्रथ्ती पर लुढ़क जाता हे ) लो तुह्माण यहां एजा छह । | - चोौकी०-| उठ करके | बच्चा अभो तुमको दूसरा पुरस्कार |




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