अध्यात्मकमलमार्तण्ड | Adhyatmkamalmartand

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : अध्यात्मकमलमार्तण्ड - Adhyatmkamalmartand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दरबारीलाल - Darbarilal

Add Infomation AboutDarbarilal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रस्तावना ७ तथापि मेदु उपजाई कवा जंग्य छ । विरोपण कटिवा पारप वस्तुको ज्ञानु उपे नही । पुनः किं विशिष्टाय भावाय श्रौरु किसौ ह भाव । सखमय- साराय समय कहतां ययपि समय शब्दका बहुत अर्थ छु तथापि एनें अब- सर समय शब्दं समान्यपने जीवादि सकेल पदां जानचा । तिहि माहि जु कोई साराय कहता सार छे। सार कहता उपादेय दै जीव वस्तु, तिं शँ श्हाको नमस्कार । इदि व्रिशेषणकौ यदू भाव हु--पार पनो जानि चेतना पदार्थ को नमस्कार प्रमाण राख्यो । श्रसारपनों जानि श्रचेतन पदाथकों नमस्कार निषेध्यौ । श्रामे कोई वितकं करसी जु सत्र ही पदार्थ आपना आपना गुण॒पर्याय विराजमान छे, स्वाप्रीन छे, कोई किस ही को श्राधीन नहीं, जीव पदार्थक्रों सारपनों क्यों घट छे। तिहिको समाधान करिवाकहूं दोइ विशेषण कह्या ।”६ एचाघ्यायी ओर लाटीसंहिता-- पण्चाध्यायीका लाटीसंहिताके साथ घनिष्ट सम्बन्ध है; अतः यहाँ दोनोंका एक साथ परिचय कराया जाता है। कविवरकी कृतियोंम जिस पंचाध्यायी ग्रन्थकी सर्वप्रधान स्थान प्राप्त है और जिसे स्वयं ग्रन्थकारने ग्रन्थ-प्रतिज्ञाम प्रन्थराज लिखा दै वह आजसे कोई ३८-३६ वर्ष पहले प्रायः ग्रप्रतिद्ध था-कोल्टापुर, श्रजमेर आदिके कुछ थोड़ेसे ही शास्त्रमण्डारोंमें पाया जाता था और बहुत ही कम विद्वान्‌ उसके श्रस्तित्वादिसे परिचित थे। शक संवत्‌ श८२८ ( ई० सन्‌ १६०६ ) में अकलूज ( शोलापुर ) निवासी गांधी नाथारंगजीने इसे कोल्हापुरके जनेन्द्र मुद्रणालय मे छुपाकर बिना ग्रन्थकर्ताके नाम और बिना किसी प्रस्तावनाके ही प्रकाशित किया । तभीसे यह ग्रन्थ विद्वानोंके শাশীশী ০৯৮ 1 বিনা: । सूरतकी उक्त मुद्रित प्रतिमे भाषादिका कुछ परिवर्तन देखनेमं श्राया, श्रतः यह अंश 'नयामन्दिर! देहलीकी सं० १७५५ द्वितीय ज्येष्ठ चदि ४ की लिखी हुई प्रतिफरसे उदशरत किया गया हे ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now