सांख्य दर्शनम् | Sankhya Darshanam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sankhya Darshanam by पं. गोकुलचन्द्र - Pt. Gokul chandra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. गोकुलचन्द्र - Pt. Gokul chandra

Add Infomation About. Pt. Gokul chandra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ूट अथ सःग्य दरनपू के द सं ०-साया शभारम गरें से भी पुरुप वन्घ नहीं | नुकमणाइन्य द घ८ ऋ-ए कमणा भरे युरे कर्मों से न नहीं क्योंकि अन्य घर्मे त्वात्‌ पुरुष धर्म नहीं अति प्रसक्ते अन्य के घधम ये अन्य का बन्धन से मुक्त को भी चन्घ मानना होगा भाज्--वुद्धि आदि संघात्‌ के धर्म सले बुरे कर्म हैं न कि पुरुष के वह पुरुष चेतन होने से निष्क्रिय है इसलिए भी कर्म का वन्धन नहीं । यदि अन्य धर्म से अन्य का बन्धन माना जावे तो कोई मुक्त ही न होगा और बद्ध जोवों के कर्म से सुक्त-बन्ध हो सकेगा अतः ऐसा नहीं । सं८-शुभाशुभ कर्मों से अन्य के वन्ध में दोष भी है विचित्र भागानुपपत्तिरन्य घ्मेरवे 0१७ प० क्र०- अन्यघमंत्वे एक के कम से दूसरे को भोग मिलना विचित्र भोगानुपपत्ति जीवों की सुख दुखादि विलक्तणतता नहीं होगों भा०--संसार में कोई सुखी कोई दुखी यह विचित्र भोग रचना पाये जाने से यदि अन्य के किये कर्म कोई दूसरा भोगे तो विचित्रता ही क्या रही क्यों कि यदि ऐसा ही माना जाता है तो सब सुखी दी सुखी य दुखी दही न




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now