भजन संग्रह (प्रथम भाग) | Bhajan Sangrah (Pratham Bhaag)

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Bhajan Sangrah (Pratham Bhaag) by वियोगी हरि - Viyogi Hari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[0৮] भजन पृष्ठ -संख्या बिनु गुपाल बैरिन भई कुंजें (लीला) १६० भगति बिनु वैल बिराने हहौ (चेतावनी) १२५ भजन तिनु कूकर सूकर जसो ( +» ) १३० भजु मन चरन संकटहरन (विनय) ११४ मधुकर ! इतनी कदियहू जाद्‌ (लीला) १६०. सधुकर स्याम हमारे चार (9 ) १६४ मर्नों हों ऐसे ही मरि जैहों (») २६२ माधव ! मोहि काहेकी छाज ! (विनय) ११५ मेरों माई ऐसों इठी बाल्गोबिंदा (लीछा) १५५ वैया मोरी, मै नहिं माखन खायो ( » ) १५६ मैया कबहिं बढ़ेगी चोटी (५9) १५२ मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझ्ञायो ( » ) १५ मैया री मोहिं माखन भावे (9) १५५ मो देखत जसुमति तेरे ढोटा (9 ) १५४ मोसम कोन कुटिल खल कामी (देन्य) १२२ मोसम पतित न ओर गुसाई ! (चेतावनं) १४० मोहन इतनो मोहि चित धरिये (प्रेम) १७५ मोहि प्रमु तमसौ होड परी ( 9 ) १७९ रुक्मिनि मोहिं ब्रज निसरत नादी (खीला) १७० ই মন; कृष्णनाम कदि रीजे (नाम) ९२ रे मनं जनम पदारथ जात (चेतावनी) १२१




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