दृष्टान्त सागर | Drishtant Sagar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.7 MB
कुल पष्ठ :
425
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ैकेलिचय
(९४ . रे हृष्टान्त सागर &
पिंजडे में रखकर भेजा और शर्त यदद थी कि पिजड़ा तो टूटे
नहीं परन्तु शेर निकल जाये । ः
इस के निकालने की महानन्द तथा उसके थ्याठ पुत्रों ने
महान कोशिश की परन्तु चुद्धि ने काम नहीं दिया घ्यौर उसका
कुच्द फल न सिकला |
इसके पश्चात चन्द््युप्त मौयें ने विचार किया कि थद«
सिंह किसी ऐसे पदार्थ का चना-है जो सर्द था उष्णत्ता से गल
जाये 1 ः
तव उसने पिंजडे को जल कुण्ड में रख दिया परंतु चद
न गला फिर दुबारा उसने चारो श्योर ध्यग्नि जाई । उसकी
गर्मी से चद्द सिंद गल कर वाहर निकल गया श्र चंद्र:
मोये को बुद्धिमानी प्रकाशित होगई ।
५ थी # ९
२१--चन्द्रशुस् का ञाद्धमानां ।
पैक वार उक्त लेस्थाजुसार पक चादशाद ने राजा मद्दानंद
के पास एक ध्य गोठी में खिलगती छुई घ्ग्नि भेजी श्योर साथ
हो साथ पक बोर सखगसों झाग एक मधघुर फल भेजा पर्तु
महानंद के यहाँ उसके झ्र्थ को कोई न जानसका तब दाखी पुन
संद्रसाप्त ने उस एर निगाय किया पीर सचको समसाया फि यह
स्यूगीठी घहकती हुई वादशाए के बाध्य को _स्पप्ट जादिर चघागती
थे दॉरिन-पक योरा सरसों इस कारण सजी है कि मरी सेना
घसंरर हे ध्योर फास सजने का माचाथ यह है कि मंशी मियता
. का फरत :्गश्दर ट्टे ||
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Vikas
at 2020-02-17 06:52:29"Best 10 out of 10"