अपभ्रंश मुक्तक काव्य और उसका हिंदी पर प्रभाव | Apbhransha Muktak Kavya Aur Usaka Hindii Par Prrabhaav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
307
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपप्रश भाषा को केन्द्रीय स्थिति ७
स्वीकार कर लिया गया । जसे नुत्य < नच्च नाच, श्रु < सुन, ज्ञा < जानना
आदि । हिन्दी में भी ये धातुये उसी रूप में मान्य हुईं । हारनले ने हिन्दी धातुओं
की जो सूची प्रस्तुत की है उसकी अपन्न श धातुओं में समुफ्स्थिति अपम्रंश मे
आधुनिक आर्य भाषाओ की प्रवृत्ति को लक्षित करती है ।*
(३) अपभ्र श॒ में भ्वादि गण अधिक प्रभावशाली है। कभी-कभी भविष्यत्
काल के रूपों को वर्तमान के अर्थ में निर्मित किया गया है। जैसे त्क्ष
देवख-देख ।
(ष) कृदन्त युक्त धातुओं की संख्या अपभ्रश और हिन्दी दोनो में
अधिक है ।
(५) अपभ्र श॒ से कुछ धातुये देशी आधार पर बनायी गयी है जिनका জী
संस्कृत में नहीं मिलता है। जेसे छड्ट <छोड़, चड़ < चढ़, उक < ढक,
चवक्ख <_ चख । हिन्दी में भी ये धातुये प्रयुक्त हुईं है ।
(६) ध्वनि परिवर्तेन से अस्ति का असति, अछट, अहइ रूप बना । अहइई
का प्रयोग वर्ण रत्नाकर' में मिलता है| अवधो सें है के लिए अहइ का ही
प्रयोग होता है । अच्छि तथा आछे का प्रयोग, मध्यकालीन काल्य मे यव-तवं
মিল जाता है--
होसइ करत म अच्छि (हेस० ४।३४८)
भलहि जो अद्ध पास (पश्चावत)
(७) अपश्चश मेँ वर्तमान कालके रूप करद, करहि, करहु, ` कर, करहु
आदि हैं। हिन्दी मे भी इनके प्रयोग ज्यों के त्यों हुए ই जेसे-~~
बसों (बसउ) ब्रज गोकुल गनि कै ग्वारन
ऊधो विरहौ प्रेम करे (करइ सरसागर) ।
सर्वताम : हिन्दी में प्रयुक्त होनेवाले अनेक सर्वनाम जपञ्न श के ही हैं । जैसे--
हुउँ--हुउं झिज्जउं तड़ केहि (हेस०)
सदेसडञ सवित्थरड हङं कहु णहु अससःश्र (संदेस० ८०)
हों रानी पदुमावत्ति सात सरग पर वास-पदुमावत
हों इस बेची बोच हो (बिहारी सतसई)
मदं टाला मड तुहू वारिया (हमर)
तं व्य मुक्खछ खल पाद् मड ¡ (सदेशराषक, १६१)
१. बंगाल एशियाटिक सोसाइटी जर्नल, जिल्द ४८, खण्ड १ (१८८० ई०),
प्० ३३-८१ ।
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