श्रीमभ्दगवग्दीता | Shrimbhadagavagityata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
105 MB
कुल पष्ठ :
1223
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्छाक १ ]
घतराष्टका चिन्ता ।
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(९:
इतने दिन धर्मका पालन किया ओर अब णसा
হান ন্ধম करनेके लिये उद्चक्त हुए हो ! यद्ध
करना तो नीच परूुपाका काय है, तम्हार जस
घामिक लोगो की यह उचित नहा हैं । कारव भी
तम्हार भाई ही हूं आर अपन भाइयोका हित
करना तम्हारा परम कतेष्य ही है । आर पहिल
भी तमने एसा ही किया हे। जिस समय गंध
वबॉन कोरवौका पराजित करके बांध दिया था
उस समय तम पाण्डवोन ही तो उनकी रक्षा की
थी ? जिनकी तमन रक्षा की, क्या नम अब
उनका हा वध कराग ! नहा नहा, यह ता कसा
इयाका कार्यं हे, यह पाण्डवोके लिय योग्य नहीं
है। इस लिय आप शान्ति धारण करनका काय
कीजिय। ?)
(अ०२७) 'ह घमराज ! तृ ता धर्मात्मा है। व्
ज्ञानता है कि जीवित नश्वर ह । यहां कोन शा-
ध्वत रहनवात्टा है ? क्या कारवबीका नाश कर के
पांडव चिर॑जीव होग ? यह कदापि नहीं होगा ! '
तम्हारा स्वराज्य था ओर वह कोरवोन छीना
यह भी सत्य हैँ, परंत व तम्हार भाश्ही है, इस
लिय राज्यादि नश्वर भोग तम्हारे पास रहे या
उनके पास रह, उसमे क्या ह ? यदि उन्हान तम्ह
स्व॒राज्य न दिया, तो तम भिक्षावत्तास उत्तम
धमंका पालन कर सकते ह । एसा न करते हुए
तुम अपने कुल का संहार करोग,ता वडा अधमं
रोगा । मनष्यजीवन अद्प हे, इसटिय स्वजाति-
योका वध करके राज्य भी कमाया, तो कितने
दिन तम लोग उसका उपभोग कराग । तम्हार
অব धर्मात्माओकों ऋर यद्ध करके आर वंशक्षय
करक राज्य कमाना किसी प्रकार भा यशकारा
नहीं है। विपयवासनाही मनष्यकों ऐसा क्र
कमे करन मे प्रवत्त करती हे, इसलिय एसी दष्ट
एसी विपयवासनाम फंसना तम्ह उचित नहों
है । तम्हार ज़स जाता भ्नप्यक्रा इह छकाक की
अपक्षा परलाक का विचार करना याग्य ह।
परलोकक लिय इस टाकक्र सखका समपण
करना तुम्हें उच्चित हैं । त चाह याग साथन कर,
ध्यानधारणाम रत हो । इसस परलोककी
प्राप्ति होगी। एस ऋर युद्धल क्या लाभ होगा !
युद्धल स्वगाज्य प्राप्त भी हुआ, तोभी वह
चिरकाल ता नहीं टिकगा। अतः धर्मसचय
करना ही तम्हें योग्य है। हे पाण्डवो ! यदि
स्वार्थ भावसे तुम छोगोन स्वकुलका नाश किया;
ता तम सबको चिरकार नरक भागना पडेगा।
ह धमराज) तमन इस समय तक काधका आश्रय
नहीं किया है, परंत आश्चर्य है, इतने समयके
पश्चात् तम्ह विपरीत वृद्धि हो रही हे ! हाय !
यद्ध करक त॒म छाग पज्यपाद भीष्म पितामह
का आर द्राणाच्रायका भी वध कगाग ? तम्हार
লল না লাললাঙ্কা নন ভালন্ক वाद तम्ह इस
गाज्यस कॉनसा सूख हागा ? इसलिय ह धरमंज्ञ
यथिप्टिर, इस ऋर कमस निवत्त हा, शान्तिका
अबलंब करा आर का रवास यद्ध करग्नका विचार
छोड दो ।”!
सावधानाकी सूचना ।
इस प्रकार संजयने पांडवांका यरझूक पे
धरमका आर संन्यास का उपदेश किया था।
यह सव धतगाएकी प्ररणास ही किया गया था।
अजन का विपाद इसीका प्रतिबिब है । अजन के
मनमे यह उपदक जम गया आर वह समझने
खग कि, सचमुच स्वराञ्यक लिय भी धमयद्ध
करना पाप है ओर भिशक्षावत्तिस गहना पण्य है।
अजनक मनपर एसा भाव स्थिर करानक लियही
वासना का त संयम कर। तम्हार जेस হালা यह व्यह घतराष्टन रचा हुआ थ। | यदि अजनके
पदपषकों एसी तष्णा धारण करना उचित नहीं ! मनपर यह उपदश पर्णरीतिस जम जाता, লা
पृथ्वी का राज्य मिलनपर भी सख कहां होता कोरवोका साप्राज्य स्थिर हो जाता और पाण्डव
९ कंबल धमले ही सख होता है। है ध्मराज! हमेशा के लिय राज्यश्रए रहते। दखिये जता
नो हू, ब्रह्मचयपालन तन॑ किया हैं, अतः लोग - स्वयं संतान हानपर भी-जित लोगोको
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