समयसार प्रवचन प्रथम भाग | Samaysaar Pravachan Part 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| १९ डीचुका है ओर उन्हीं का हिन्दी अनुवाद कराके श्री समयसार-प्रवचन प्रथम भाग (हिन्दी) को हमें मुमुछुओं के हाथ में देते हुए हषे होरहा है | इस अनुवाद में कोह न्यायविरुद्ध भाव न आजाये इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है। जैसे श्री समगसार शास््र के मूल-कर्ता और टीकाकार अत्येत आत्म- स्थित. आचाये भगवान थे वैसे ही उसके प्रवचनकार লী स्वरूपानुभवी, वीतराग के परम भक्त, अनेक शास््रो के पारगामी एवं आश्चययेकारी प्रभावना उदय के धारी युगप्रधान महापुरुष है । उनका यह ॒ समयस।र-प्रवचन पढ़ेंते ही पाठको को उनके आत्म-भनुभव, गाढ़ अध्यात्म प्रेम, स्वरूपोन्सुख परिणति, वीतराग भक्ति के रंग में रंगा हुआ उनका चित्त, अगाघ श्रुतज्ञान ओर परम कल्याणकारी वचनयोग का झनुमत्र हुए बिना नहीं रहता । उनका संक्षिप्त जीवरल परिचय अन्यत्र दिया गया है, इसलिये उनके गुणों के विषय में यहँ। विशेष कहने की आवश्यकता नहीं है। उनके अत्यत घ्माश्चयैजनकर प्रमावना का उदय होने के कारण गत चौदह वषो मेँ समयसार्‌, प्रवेचनसार, नियमसार, षट्खण्डागम, पमनन्दिपचविरा- तिका, तलाथेसार, इष्टोपदेश, पंचाध्यायी, मोल्षमा्॑ग्रकाराक, भनुभव- प्रकाश, आत्मसिद्धि शास्त्र, भात्मानुशासतन इत्यादि शास्त्रों पर आगमरहस्य- प्रकाशक, स्वानुभव मुद्रित अपूर्व प्रवचन करके काठियाबाड़ में आत्मविचा का भतिग्रत्र७ आन्दोलन किया है। मात्र काठियावाड़ में ही नहीं, किन्तु धीरे-धीरे उनका पवित्र उपदेश पुस्तकों ओर “आत्मधमे! नामक मासिकपन्न के द्वारा प्रश्नाशित होने के कारण समस्त भारतवषे में अध्यात्म विद्या का आन्दोलन वेगपूवेक विस्तृत होरहा है। इसप्रकार, स्वभाव से सुगम तथापि गुरुगम की लुप्तप्रायवा के कारण ओर अनादि अज्ञान को लेकर अतिशय दुर्गम होगये जिनागम के गंमीर, आशय को यथाथेरूप से स्पष्ट प्रगट करके उन्होंने वीतराग-तिज्ञान की बुक्कती हुईं ज्योति को प्रज्वलित किया है। परम पवित्र जिनागम तो अपार निधानों से परिपूर्ण है, किन्तु उन्हे. देखने की दृष्टि गुरुदेव के समागम और उनके करुणापूर्वक दिये इए ,




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