सागारधर्मामृत (विजया-टीका-सहित) | saagardharmamrat (vijaya-Teeka-Sahit)

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saagardharmamrat (vijaya-Teeka-Sahit) by मोहनलाल जैन शास्त्री - Mohanlal Jain Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` पञ्चमाध्यायः } ` साषार्थ--कन्द्पं, कौक्छुच्य, मौखयै, असमीक्ष्याधिः करण और सेव्या्थाधिकता ये पांच अनथेद्ण्डत्रत के अतिर्चार हैं । इस ब्रती को इनका परित्याग करना चाहिये ॥१२॥.. फन्दपं--काम.या राग के उद्दग से प्रहासमिश्चित अशिष्ट बचन बोलना कन्दप कहलाता है | † এ | कोत्कुच्य--हास्य और संडवचन सहित भोंह, नेत्र, नोकं, झोंठ, मुख, पेर और हाथ आदि की संकोचादि क्रिया हारा कुचेष्टा करने को कौ्कुच्य कहते है । सौखयै -धृष्टतापू्ंक विचार-रहित असत्य ओौर असंबद्ध बहुत बोलने को मौखये कहते हें । असमीक्ष्याधिकरण--अपसे प्रयोजन का विचार नहीं करके प्रयोजन से च्रधिक कायै का करना कराना असमोयाक््याधि- करण कहलाता है । जैसे किसी से कहना कि तू बहुत सी चटा- इयाँ लाना, हमें जितनी लगेंगी हम ले लेबेंगे और सी बहुत से खरीददार हैं वे भी ले लेवेंगे, हम विकवा देवेंगे। इस प्रकार चटाई बनाने वालों को अपने प्रयोजन के बिना अधिक काय कराना, और बेचने वालों को बहुत आरम्भ में लगाना। इसी प्रकार से बढ़ई और इंटा-पकाने बालों आदि से कहता अससीक्ष्याधिकरण नास का चौथा अतिचार है। अथवा हिंसा के उपकरणों को उनके साथी दूसरे उपकरणों के पास रखना । जैसे उखली के पास मूसल, दल के पास साल, गाड़ी के पास जुआँ और घलुष के साथ बाणों को रखनो भी अससीक्ष्याधिकरंण नामक अतिचार है। क्योंकि ऐसा करने से इन चीजों को आरम0मभू्भादि काय के लिए हर एक व्यक्ति सुल्भता से ले सकता है। तथा देने के लिए निषेध भी नहीं किया जां सकता । हि




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