कालिदासं नमामि | Kalidaasan Namami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कवि के विपय में लिखी है । 'कुमारसम्भव” का कथानक हिमालय की उराः प्रारंभ होता है भर उमा तथा शिव के विवाह से संबंधित ই। काव्य प्राकृतिक सौन्दयंके वणंनों सेभरा ह मेघदूतः की पाश्चात्य समीक्षको ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है। खण्ड-प्रवन्ध के रूप में संसार का यह पहला गीतिकाव्य--लिरिक---है । वसे तो साफ़ो आदि प्रसिद्ध नव ग्रीक लिरिक कवियों ने कालिदास से प्राय: हज़ार साल पहले लिरिक लिखना आरंभ कर दिया था पर प्रव॑ंध- लिरिक के रूप में कोई स्वतंत्र काव्य कालिदास से पहले किसी देश में नहीं लिखा गया। अनेक यूरोपीय भाषाश्रों में 'मेघदूत” का अनुवाद हो चुका है । इसमें मंदाक्रांता नाम के एक ही छुन्द का प्रयोग हुआ है और इसके इलोकों की संख्या केवल १२० है। स्वयं संस्कत साहित्य म इस कान्य का वार-वार अनुकरण हुभ्रा है! दसी की छाया मे प्रसिद्ध जमन लिरिकं कवि शिलर ने स्काटोंकी रानी का वन्दनी रानी' शीषेक से चरित लिखा जिसमें उसने उसकी ओर से उसके स्वदेश स्क्राटलंड को बादलों से संदेश भेजा । 'ऋतुसंहार' कालिदास की प्रत्यक्षत: प्राथमिक कृति है। यह भारत की छहों ऋतुग्नरों का क्रमिक वर्णोत करता है मस्त और जीवच्त । ऋतुओं के प्राणवात्‌ चित्र एक के बाद एक काव्यपथ पर उतरते चले जाते हैं और লিজা জ্বি ऋतु-ऋतु उघड़ता चला जाता है। काव्य का प्रमुख विषय प्रकृति ही है, पर सारी ऋतुओों का एकत्र इतना मांसल रूपायन स्वयं कवि ने अन्यत्र नहीं किया, अन्य कवियों की कृतियों में तो उसका अभाव है हो । कवि की इन रचनाओं में भारत के सामुदायिक और वेयक्तिक जीवन की अनन्त राशि खल पड़ी है कृतियों की उत्तरोत्तर प्रौढ़ता के विचार से उनका संभावित क्रम इस प्रकारदहे : ऋतुसंहार, मालविकाग्निमितर, विक्रमोवेसी, मेघदूत, कुमारसंभव, रघुवंश ग्रौर ्रभिन्नान शाकुन्तल । शली -- कालिदास को भ्रन्य संस्कृत कवियों से विशिष्टता उनकी सहज शेली तथा प्रसाद गुण में ! भाषा के उपर किसी




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