सम्यक् श्रामण्य भावना | Samyak Shramanya Bhavna

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Samyak Shramanya Bhavna by सोहनलाल बज - Sohanlal Baj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्यक आमण्य भावना / १३ भूमिका इस “सम्यक्‌ श्रामण्य भावना” (सम्यक्‌ पूर्वक श्रमण सस्कृति की भावना) ग्रथराज मे आदिनाथ भगवान के बताये हुए श्रावक धर्म और मुनि धर्म का वर्णन किया है | इन दोनो धर्मो मे पहला परपरासे मोक्ष के लिए कारण है । दूसरा मुनि धर्म साक्षात मोक्ष का कारण है | इनमे रत्नत्रय धर्म मे सम्यक दर्शन, सम्यक्‌ ज्ञान ओर सम्यक्‌ चारित्र साक्षात मोक्षका कारण है | सच्चे देव, सच्चे गुरु और सच्चे धर्म (शास्त्र) के ऊपर स्वय आत्मभाव ओर श्रद्धा सम्यक्‌ दर्शन की उत्पत्ति का कारण बताया है । गृहस्थ धर्म मे आरभ आदि उद्योग करते हुए जीवोकी रक्षा के भाव रखते हुए आरभ आदि मे जो हिसा होती है उन पापो को धोने के लिए देव पूजा, गुरु पास्ती, स्वाध्याय, सयम, तप, दान आवश्यक ই | হুল क्रियाओं से जीव किए हुए पापो से बचकर पुण्य कर्म को बाधकर क्रम से चारित्र प्राप्त कर केवल ज्ञान के लिए तप मे तत्पर होता हुआ, घाती कर्मो को नाशकर अनत दर्शन, अनत ज्ञान, अनत सुख ओर अनत वीर्य प्राप्त करता हे । इस ग्रथ मे अनत मिथ्यात्व के नाश करने का ओर सम्यकत्व प्राप्त करने के लिए भगवान महावीर के अनुशासन के अनुसार बडे बडे पूर्वाचार्यों जैसे श्री दर्शनाचार्य के शिष्य श्री भूतबली ओर पुष्पदत आचार्यो के धवल - जय धवल षट्खडागम्‌, श्री कुदकुदाचार्य रचित मूलाचार , श्री अमृतचद्राचार्य रचित पुरुषार्थं सिद्धि उपाय, श्री जयसेनाचार्य रपत समयसार टीका, श्री समतभद्राचार्य रचित रत्नकरड श्रावकाचार, श्री कातिकाचार्य रचित कार्तिकानुप्रे्षा, श्री जिनसेनाचार्य रचित महापुराण, श्री सोमदेवसूरी रचित यशस्तिलक आदि, श्री चामुडराय रचित चारित्र सार, श्री अमितगति आचार्य रचित श्रावकाचार, श्री वसुनदी आचार्य रचित वसुनदी श्रावकाचार, श्री अकलक देव रचित तत्वार्थ श्लोक वार्तिक, श्री विद्यानदजी रचित आप्त निवास, श्री पद्मनदी




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