ह्रदय - तरंग | Hriday Tarang
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ३ ]
हो भक्तप्रेम-बस भारत भूमि भार,
देवेश आपुहि यहाँ कृपया पधारे ॥
मिढ़ाकर के देहातो हिन्दी मद्रसे से “कवि कन्दनलाल मिढा-
कुखारे” ने सत्यनारायण के हृदयनक्षेत्र मे जो कविता बेल वो दी
थी वही काल-क्रम से अक्रित होकर अपने पात फेलाने लगी थी।
राजपूत” प्रेस व स्वेशबान्धव (मासिक पत्र ) के मालिक
कुँ० हनुमन्तसिदह्द रघुवशी वहुतो को हिन्दी लिखने-पढ़ने का
अभ्यास करा गये। उस समय“ राजपूत” का जोर था, “चित्तार
चातकी” वनारस सें गंगाजी में डुबाइई जा चुकी थी। ठाकुर सूय-
कुमार वमो उन दिनो यहीं थे। १६०५ ईं० से स्वदेशी आन्दोलन
जड़ पकडने लगा था।
देश सेवा चारु उन्नति नागरी सुप्रचार ।
निज धर्म जानि स्वदेश वांधचः कौ भयो श्रवतार ।
“स्वदेश बाधव के लिए उपयुक्त मोटो बनाकर उसमें कविता
टना पडित सत्यनारायण का ' धर्म” होगया। उस ज़माने में जितनी
कविताएँ रची गयी सबही में स्वदेश-प्रेम की कल्नक पाई जाती है ।
उधर बंगाल से--
'छुजला सुफला मलयज शीतलां शस्य श्यामला मातरम्?
की ध्वनि उठी तो इधर--
“बन्दों माठ्भूमि सनभावनि? की आवाज़ गूजने लगी। हरेक
जलसे मे पर॑ सत्यनारायणजी माद्धमूमि का राग ॒श्रलापते सुनाई
पढ़ते थे ।
चतुर्वदी श्री रामनारायण मिश्र बी० ए० उन दिनो आगरे में
आबकारी इन्स्पेक्टर थे। चतुर्वेदी ह्यारिकाप्रसादजी प्रयाग से “श्री
राघवेन्द्र” निकाल रहे थे | पं० श्रीधर पाठक का--
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