ह्रदय - तरंग | Hriday Tarang

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Hriday Tarang by सत्यनारायण शर्मा - Satyanarayan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ३ ] हो भक्तप्रेम-बस भारत भूमि भार, देवेश आपुहि यहाँ कृपया पधारे ॥ मिढ़ाकर के देहातो हिन्दी मद्रसे से “कवि कन्दनलाल मिढा- कुखारे” ने सत्यनारायण के हृदयनक्षेत्र मे जो कविता बेल वो दी थी वही काल-क्रम से अक्रित होकर अपने पात फेलाने लगी थी। राजपूत” प्रेस व स्वेशबान्धव (मासिक पत्र ) के मालिक कुँ० हनुमन्तसिदह्द रघुवशी वहुतो को हिन्दी लिखने-पढ़ने का अभ्यास करा गये। उस समय“ राजपूत” का जोर था, “चित्तार चातकी” वनारस सें गंगाजी में डुबाइई जा चुकी थी। ठाकुर सूय- कुमार वमो उन दिनो यहीं थे। १६०५ ईं० से स्वदेशी आन्दोलन जड़ पकडने लगा था। देश सेवा चारु उन्नति नागरी सुप्रचार । निज धर्म जानि स्वदेश वांधचः कौ भयो श्रवतार । “स्वदेश बाधव के लिए उपयुक्त मोटो बनाकर उसमें कविता टना पडित सत्यनारायण का ' धर्म” होगया। उस ज़माने में जितनी कविताएँ रची गयी सबही में स्वदेश-प्रेम की कल्नक पाई जाती है । उधर बंगाल से-- 'छुजला सुफला मलयज शीतलां शस्य श्यामला मातरम्‌? की ध्वनि उठी तो इधर-- “बन्दों माठ्भूमि सनभावनि? की आवाज़ गूजने लगी। हरेक जलसे मे पर॑ सत्यनारायणजी माद्धमूमि का राग ॒श्रलापते सुनाई पढ़ते थे । चतुर्वदी श्री रामनारायण मिश्र बी० ए० उन दिनो आगरे में आबकारी इन्स्पेक्टर थे। चतुर्वेदी ह्यारिकाप्रसादजी प्रयाग से “श्री राघवेन्द्र” निकाल रहे थे | पं० श्रीधर पाठक का--




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