दिमागी ऐयाशी | Dimagi Eyashi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिमागी ऐयाशी ७ ~ ~~ ~~ ~~ ~ ~~~ ~ ~~~ ^~ मकरन्द ने कटा -श्राप समकर बताइये । अरुण ने पूछा--यह घटना कबकी है, और किसके घर की है? मकरन्द ने कहा- न इसका कोई समय दै, न कोई घर । यह तो कस्पना है । अरुण--तब तुम अपना कास-घन्वा छोड़कर इस व्यथं के ऋमट में क्‍यों पडे हो ? पराई स्त्रियों की कल्पित चर्चा करने सें तुमको या तुम्हारे सुननेवालों को क्या लाभ पहुँच रहा है ? मधुकरसिंह ने मकरनद का पत्त लेते हुये कहा--यह तो समय “बिताने के लिये एक मनोरंजक काम है । अरुण - प्र इस काम का प्रिणास क्या होगा ? नौजवानों की दिसागी ऐयाशी बढ़ेगी । सब लोग अश्रपने घर के जरूरी फाम-राज छोडकर मादसिक व्यभिचार में प्रवृत्त होगे; विषयी बनेगे; निबंज् होंगे और च्िर्यो को कुलटा बनायेगे । इससे लाभ ? दिसाग़ी ऐयाशी की बात सुनकर सब लोग जाग-से उठे । अब आयः सभी अरुण के पत्त में आ गये! यह देखकर मकरन्द को कुछ जोश आया । उसने कहा--भाषा के बढे-बडे आचायों ने इसी प्रकार की कविता की है । क्या वे लोग সুজ थे ! अरुण ने शान्ति से कहा-समूर्ख तो नहीं थे । मूर्ख होते, तो ऐसी करपना नहीं कर सकते । हाँ, पेट के गुलाम ज़रूर थे । उन्होंने अपने आश्रय-दाताओं की काम्ुकता की वृद्धि की है, ओर उन्हे असन्न करके जीविका प्राप्त की है। वे दोनों लाभ से रहे । उन कवियों की कविता सुनकर आश्रय-दाताओं की रसिकता बढ़ी, उन्होंने विपय-्भोग का सुख या दुःख भोगा। उसके बदले में कवियों ने अन्न, गाँव और हाथी-घोडे पाये; पर छुस क्यों उसपर सती दो रहे हो ? अपनी र्ली और बाल-बच्चों की चिन्ता




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