दिमागी ऐयाशी | Dimagi Eyashi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दिमागी ऐयाशी ७
~ ~~ ~~ ~~ ~ ~~~ ~ ~~~ ^~
मकरन्द ने कटा -श्राप समकर बताइये ।
अरुण ने पूछा--यह घटना कबकी है, और किसके घर
की है?
मकरन्द ने कहा- न इसका कोई समय दै, न कोई घर । यह
तो कस्पना है ।
अरुण--तब तुम अपना कास-घन्वा छोड़कर इस व्यथं के
ऋमट में क्यों पडे हो ? पराई स्त्रियों की कल्पित चर्चा करने सें
तुमको या तुम्हारे सुननेवालों को क्या लाभ पहुँच रहा है ?
मधुकरसिंह ने मकरनद का पत्त लेते हुये कहा--यह तो समय
“बिताने के लिये एक मनोरंजक काम है ।
अरुण - प्र इस काम का प्रिणास क्या होगा ? नौजवानों
की दिसागी ऐयाशी बढ़ेगी । सब लोग अश्रपने घर के जरूरी
फाम-राज छोडकर मादसिक व्यभिचार में प्रवृत्त होगे; विषयी
बनेगे; निबंज् होंगे और च्िर्यो को कुलटा बनायेगे । इससे लाभ ?
दिसाग़ी ऐयाशी की बात सुनकर सब लोग जाग-से उठे ।
अब आयः सभी अरुण के पत्त में आ गये! यह देखकर मकरन्द
को कुछ जोश आया । उसने कहा--भाषा के बढे-बडे आचायों
ने इसी प्रकार की कविता की है । क्या वे लोग সুজ थे !
अरुण ने शान्ति से कहा-समूर्ख तो नहीं थे । मूर्ख होते, तो
ऐसी करपना नहीं कर सकते । हाँ, पेट के गुलाम ज़रूर थे । उन्होंने
अपने आश्रय-दाताओं की काम्ुकता की वृद्धि की है, ओर उन्हे
असन्न करके जीविका प्राप्त की है। वे दोनों लाभ से रहे । उन
कवियों की कविता सुनकर आश्रय-दाताओं की रसिकता बढ़ी,
उन्होंने विपय-्भोग का सुख या दुःख भोगा। उसके बदले में
कवियों ने अन्न, गाँव और हाथी-घोडे पाये; पर छुस क्यों उसपर
सती दो रहे हो ? अपनी र्ली और बाल-बच्चों की चिन्ता
User Reviews
No Reviews | Add Yours...