बरगद की छाया | Bargad Ki Chhaya

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Bargad Ki Chhaya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बरगद की छाया १७ धरनी : (ऊंचे) अरे, इस बिरजू ने तो खानदान की नाक ही कटवा डाली है। (रोते हुए) तुम जो चाहो- सो कर सकते हो, बौरेजी । पर मेरी बिरादरी तो मुझे जिन्दा नही छोडेगी । कोई मेरे साथ हुक्का-पानी नही पियेगा । विक्रम : प्रौर कोई पिये, न पिये, मै पियूगा । मेँ तो तेरी जाति का ही हू न। अब बोल कया कहता है ? घरनी : (रोते हुए) मुकपर रहम करो, बौरेजी । विक्रम : तुभपर रहम करू श्रौर उस छोकरीसे कहं दू कि तू आत्म-हत्या कर ले! क्यो, है न यही बात । जो करेगा सो भरेगा, पण्डित । यह तो कुदरत का नियम है । घरनी : (गुस्से से) पचायत जब यही फंसला करने बैठी है तो करे। पर मैं बताये देता हू कि विरजू भेरे घर पर नही रहेगा । विक्रम : कोई बात नही, मेरे घर रह लेगा । चलो, अच्छा है। बेटे और बहू के आने पर मेरे घर पर भी रौनक हो जायगी । हा, तो बोलो, इस बात का कौन विरोध करता है । नामुमकिन कहनेवाले श्रपने दिल साफ करके इस बात का जवाव द । (रुककर ) कोई नही बोलता । कहो पचो, भ्रव आप लोगो की क्या राय ই । [हलका कोलाहल) चररण : सब आपके साथ हैँ, बापू । पर पहले गोपालदास से भी पूछ लिया होता । विक्रम : उसकी जिम्मेदारी मुभपर छोडो । में उससे बात




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