बरगद की छाया | Bargad Ki Chhaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बरगद की छाया १७
धरनी : (ऊंचे) अरे, इस बिरजू ने तो खानदान की नाक ही
कटवा डाली है। (रोते हुए) तुम जो चाहो- सो कर
सकते हो, बौरेजी । पर मेरी बिरादरी तो मुझे जिन्दा
नही छोडेगी । कोई मेरे साथ हुक्का-पानी नही पियेगा ।
विक्रम : प्रौर कोई पिये, न पिये, मै पियूगा । मेँ तो तेरी जाति
का ही हू न। अब बोल कया कहता है ?
घरनी : (रोते हुए) मुकपर रहम करो, बौरेजी ।
विक्रम : तुभपर रहम करू श्रौर उस छोकरीसे कहं दू कि
तू आत्म-हत्या कर ले! क्यो, है न यही बात । जो
करेगा सो भरेगा, पण्डित । यह तो कुदरत का नियम है ।
घरनी : (गुस्से से) पचायत जब यही फंसला करने बैठी है
तो करे। पर मैं बताये देता हू कि विरजू भेरे घर पर नही
रहेगा ।
विक्रम : कोई बात नही, मेरे घर रह लेगा । चलो, अच्छा है।
बेटे और बहू के आने पर मेरे घर पर भी रौनक हो
जायगी । हा, तो बोलो, इस बात का कौन विरोध करता
है । नामुमकिन कहनेवाले श्रपने दिल साफ करके इस
बात का जवाव द । (रुककर ) कोई नही बोलता । कहो
पचो, भ्रव आप लोगो की क्या राय ই । [हलका
कोलाहल)
चररण : सब आपके साथ हैँ, बापू । पर पहले गोपालदास से
भी पूछ लिया होता ।
विक्रम : उसकी जिम्मेदारी मुभपर छोडो । में उससे बात
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