अपनों की खोज में या बुकसेलर की डायरी | Apno Ki Khoj Mein Ya Booksellar Ki Dayari

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Apno Ki Khoj Mein Ya Booksellar Ki Dayari by रामप्रसाद - Ramprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चुकसेलर की डायरी ७ २८ मई का मसूरी से रवाना हुए । पुरक परिडत सदानन्दजी के पास, जिनकी मसूरी में पुस्तकों और स्टेशनरी छी दूकान है, रख दीं। परिडतजी शान्त और धीरे-धीरे उदार होनेवाली प्रकृति के व्यक्त है। भल खभाव के हैं और, जान पड़ता है, पेसा कमाना जानते हैं । २८ की रात देहरादून में उसी जैन-धमेशाला में रहकर २५ के हरद्वार पहुँचे। मसूरी में चौथी और पाँचवीं रात का धर्मशाला के कमरे का किराया भी देना पड़ा था, क्योकि तीन दिन से अधिक वहाँ ठहरने की आज्ञा नहीं है। हरद्वार में गह्नाजी के स्नान किये, गुलज़ार बा-बहार हर की पेड़ी की सैर की, बाज़ार का चक्कर लगाया और ३० के वहाँ से चलकर ३१ को सुबह आगरा आ पहुँचे । लीला की तबीयत सम्हली रही और आगरे में अपना ५-६ दिन का विश्राम आरमस्म है| गया। १६-६- ४१ ५ जून के आगरे से चलकर ६ के फिर मसूरी | देहरादून पहुँचने- वाली गाडी पर तीन लड़को की एक मण्डली से कुछ बातचीत हुई और मसूरी की सनातनधमे-धमेशाला में पहुँचने पर देखा, वे लोग भी उसी में आ ठहरे हैं। साथ हो गया। आज़मगढ़ के इन तीन विद्याथियो की टुकडी मे कप्तान थे मिष्टर , दाङ्दयाल अग्रवाल, अठवारिया स्टेट क मालिक के सुपुच । १८-१९ साल की उम्र है, नवीं क्लास मे पढते हैं, लेकिन तबीयत में बु जुगी है। स्वभाव अच्छा और दयाछु है। हुकूमत और पैसे का न घमण्ड है, न दिखाबा। सिफ स्मेकि'ग का शाक्र है। दो नई चीजों का परिचय मसूरी में रहने के लिए सेंने उन्हे करा दिया है--_चाय और डबल रोटी । शेप दे। उनके सहपाठी हैं । सन्तन पाठक मिलनसार ओर श्रद्धालु प्रकृति के नवयुवक हैं। भक्ति- भावात्मक लेखों के नाटकीय भाषा में पढ़ने में उन्हे रंस मिलता है। ৬ जीवन का कुछ শহুহ भी बनाना चाहते हैं। चनारसी पॉडे उन




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