शासन यन्त्र | Shasan Yantra

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Shasan Yantra by Elyasahamad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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् शासन-यन्त्र बत उनके विरुद्ध असन्तोष बढ़ा और उपयुक्त अवसर पाकर जनता ने उनके विरुद्ध खड़े होकर बहुतन्त्र की स्थापना की । यह बहुतन्त्र सम्पूर्ण जाति के द्वित के लिये हुआ इसके पश्चातू जनता के इस शासन का अधःपतन आरम्भ हुआ और मसंयत-समूह शासन 1 0007प16 अथवा अज्ञानी शासन ने इसका स्थान लिया । इसके फजरूप समाज को पूर्ण विनाश से बचाने के लिये एक व्यक्ति का उदय हुआ । इस प्रकार सावंजनिक हित के लिये फिर एकतन्त्र की स्थापना हुई । अतः अरस्तू के अनुसार शासन के रूप चक्रवत्‌ परिवर्तित होते हैं और एक पूर्णचक्र के पश्चात्‌ जलता को शान्ति और ऐक्य देने के लिये शासन के प्रथम रूप का छागमन होता है। यह परिवतेन चक्र संक्षेप में इस प्रकार है -- १ एकनन्त्र का पतन कठोर शासन के रूप में होता है ९ कठोर शासन का स्थान कुल्लीन तन्त्र अहण करता है ३ कुललीन तन्त्र गिर कर झल्प-जन-तन्त्र हो जाता हैं ४ अल्प जन-तन्त्र का स्थान बहुतन्त्र अ्रहण करता है ४५ बहुतन्त्र का पतन असंयत-समूह शासन के रूप में होता है और _ दे असंयत-समूह-शासन का स्थान फिर एकतन्त्र रहण करता है । पोलिबियस 101. छा0ए8 ह 6 अरस्तू के बाद पोलिबियस ने भी शासन के विभिन्न रूपों पर विचार किया हैं। वह अरस्तू के वर्गीकरण को स्वोकार करता है परन्तु फिर कहता है. कि हमको उसी शासन को सवंश्रेष्ठ समभकना चाहिए जिसमें तीनों अंगों--एक-तन्त्र कुललीन-तन्त्र और प्रजातन्त्र--का समन्वय हो । यह शासन का मिश्रित रूप है। रोम के शासन विधान में जिसका वह अजुशीलन कर रहा था कांसल 0०ए8ए एकतन्त्रीय शक्ति का प्रति रूप था सेनेट 86096 प्रकृति सें छुलीन . त्रात्मक थी श्ौर पापुलस रोमेनस रचना में अजा-तन्त्रात्मक थी । इसलिये पोलिवियस के अनुसार रोम राज्य की श्रेष्ठता का कारण उसके शासन का मिश्रित रूप था | मेक्यावेली बीदाँ आर मॉन्टेस्क्यू 5 112 7४फ1..1 90017 271 1१500 पोलिबियस के पश्चातू और बहुत स विचारक हुए । इन्होंने शासन के विभिन्न... रूपों का वर्गीकरण करने का श्रयन्न किया किन्वु जहाँ तक सिद्धान्त का प्रश्न था उर्पमें से.. किसी ने भी अरस्तू की परम्परा को नहीं छाड़ा । मैक्याबेली ने एकतन्त्र प्रजालन्त्र तथा शासन के मिंश्रत रूप पर और बोदों न एकतन्त्र कुल्लीन तन्त्र सौर प्रजा तन्त्र पर विचार किया ₹६। उसने एक तन्त्र के तीन भेद किये हूं -- श राजकीय एक तन्त्र जिसमें राजा इश्वरीय नियमा का पालन करता तथा जनता के हित के लिये शासन करता है। २ स्वेच्छाचारीं राजा का शासन जा मनमानी तथा शक्ति- शाला किन्तु अन्यायी नहीं दाता । ३ कठार जिसमें राजा ईश्वरीय नियमों का उल्लबनकरता कथा जनता पर अपनी सनक के अनुसार राज्य करता है । इसी प्रकार मान्टेस्क्यू न शासनों की प्रजातन्त्र एकतन्त्र तथा. स्वेच्छाचारी रूप में बाँटा हैं । मजातन्त्र शासन व थे जिनमें सर्वोच्च-शक्ति जनता के हाथ में थी एक-तन्त्र शासन ये




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