जैनतत्त्वमीमांसा की समीक्षा | Jain Tattva Mimansa Ki Samiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-- समीक्षा: -८ &.
र के ध १७
; शर्थ--निश्वय ज्यवद्यर रूप ज दोय.नय तिनिके विषय के
=
भेदतें परस्पर विरोध है, तिस विसोध दुर करनदारा म्यात्पद् करि
. विद्धि जो. जिनभगवान का बचन तिस चिषे जो ভু दें.
ब्रचुर प्रीति.सहित अभ्यास करे ह ते स्वयं किये स्वयमेव -च्रपि
श्राप वम्यां रै मोद किये मिथ्यात्व कमे क्राः उदय . जिनने तें
पुरुष इस समयसार जो शुद्ध आत्मा अतिशय रूप परम ज्योति
ब्रकाशमान ताहि शी ` पावे हैं. अवलोकन करे हैं .। कैसा हे
ससयसार ? अनव कहिये नंवीन उपज्या नांदीं कमतें आच्छादित॑
था सो प्रगट व्यक्तरूप भया दै)! बहुरि केसा दे! অল
कहिये जो स्ेथा एकान्त रूप कुनय ता की अपेत्ता करे अक्षुण्ण-
कहिये खेंडया न जाय दै निबाध दै। भावाथे-जिन वचनं হতনা
रूप दे जहां नय के विषय का विरोध है, जेसे सद्रर्पः
' है असद्रप न होय, एक होय सो अनेक न दोय॑, नित्य होय सो
अनित्य न होय, भेद् रूप होय सो अमेद रूप न होय, शुद्ध होय
क्षो अशुद्धं न होय इत्यगद्कि नयनिके विषयनिविषें .विगोध है `¢
वर्दी जिन. वचने कर्थं चत्. विवच्लातं सत् असत्- एक ` अनेकः:
नित्य अनित्य भेद-अभेद शुद्ध-अशद्ध जैसे विद्यमान वस्तु ह
तेसे कदविकरि 'নিহার্থ দত दे.। भूठो, कल्पना नादी. करे दै
ताते ' द्रज्यार्थिक ` पर्यायार्थिक दोय नय में प्रयोजनके वशतें
शुद्ध द्रव्यार्थिक सुरस्य करि निश्चय नय -कदे है । अर अशुद्धः
द्व्याथिक रूप पर्यायार्थिक कू' गोण करि व्यवहार कहें हैं। ऐसे
जिलवचन নিত जे पुरुष रमें हैं ते इस शुद्ध आत्मा कू यथार्थं
चाय है । अन्यं सर्वरथा एकान्ती संस्यादिकं नाहीं पाड है। जातें
कवेथा एकरन्त प्रज्ञका वस्तुं विष्य नादी 1 एक धमं मात्र द ग्रहणक
कैरि -वस्तु की श्रसव्यः বলা কই ই । सौ ` असत्याय ' दी दे
कणा संहित मिथ्यादष्ट्ि दै देसेजानना २ >; ৮12
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