जैनतत्त्वमीमांसा की समीक्षा | Jain Tattva Mimansa Ki Samiksha

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Jain Tattva Mimansa Ki Samiksha by सुरेंद्र कुमार जैन - surendra kumar jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-- समीक्षा: -८ &. र के ध १७ ; शर्थ--निश्वय ज्यवद्यर रूप ज दोय.नय तिनिके विषय के = भेदतें परस्पर विरोध है, तिस विसोध दुर करनदारा म्यात्पद्‌ करि . विद्धि जो. जिनभगवान का बचन तिस चिषे जो ভু दें. ब्रचुर प्रीति.सहित अभ्यास करे ह ते स्वयं किये स्वयमेव -च्रपि श्राप वम्यां रै मोद किये मिथ्यात्व कमे क्राः उदय . जिनने तें पुरुष इस समयसार जो शुद्ध आत्मा अतिशय रूप परम ज्योति ब्रकाशमान ताहि शी ` पावे हैं. अवलोकन करे हैं .। कैसा हे ससयसार ? अनव कहिये नंवीन उपज्या नांदीं कमतें आच्छादित॑ था सो प्रगट व्यक्तरूप भया दै)! बहुरि केसा दे! অল कहिये जो स्ेथा एकान्त रूप कुनय ता की अपेत्ता करे अक्षुण्ण- कहिये खेंडया न जाय दै निबाध दै। भावाथे-जिन वचनं হতনা रूप दे जहां नय के विषय का विरोध है, जेसे सद्रर्पः ' है असद्रप न होय, एक होय सो अनेक न दोय॑, नित्य होय सो अनित्य न होय, भेद्‌ रूप होय सो अमेद रूप न होय, शुद्ध होय क्षो अशुद्धं न होय इत्यगद्कि नयनिके विषयनिविषें .विगोध है `¢ वर्दी जिन. वचने कर्थं चत्‌. विवच्लातं सत्‌ असत्‌- एक ` अनेकः: नित्य अनित्य भेद-अभेद शुद्ध-अशद्ध जैसे विद्यमान वस्तु ह तेसे कदविकरि 'নিহার্থ দত दे.। भूठो, कल्पना नादी. करे दै ताते ' द्रज्यार्थिक ` पर्यायार्थिक दोय नय में प्रयोजनके वशतें शुद्ध द्रव्यार्थिक सुरस्य करि निश्चय नय -कदे है । अर अशुद्धः द्व्याथिक रूप पर्यायार्थिक कू' गोण करि व्यवहार कहें हैं। ऐसे जिलवचन নিত जे पुरुष रमें हैं ते इस शुद्ध आत्मा कू यथार्थं चाय है । अन्यं सर्वरथा एकान्ती संस्यादिकं नाहीं पाड है। जातें कवेथा एकरन्त प्रज्ञका वस्तुं विष्य नादी 1 एक धमं मात्र द ग्रहणक कैरि -वस्तु की श्रसव्यः বলা কই ই । सौ ` असत्याय ' दी दे कणा संहित मिथ्यादष्ट्ि दै देसेजानना २ >; ৮12 ५ পর পা ওঃ ॐ अं ॐ হিঃ টি न + এস ३.9 =^ ` ड ॐ ५० ५ प्र + ७




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