प्राकृत-विमर्श | Prakrat-Vimarsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
373
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ० सरयू प्रसाद अग्रवाल - Dr. Saryu Prasad Agrawal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)|
1
„९
]
इस प्रकार स्वच्छुंद प्रयोगो के लोप होने पर आर्य भाषा के लो कक
मध्यकालीन स्प प्राकृत का विकास होना आरमभ हुआ | परन्तु इन
प्राकृतों ने ग्रा्दन ओर प्राचीनतर आर्य भाषा की विशेपताओों की
ही अपने विकास का मुख्य आधार बनाया | নীতি संस्कृत तथा
प्राकृत के वश्याकरणो ने प्राकृत' ऊे विकास ओ।र विश्लप्रण मे संस्कृत
भाषा को ही उसका आधार माना ই | पिशल ने यह स्पष्ट किय्रा ह कि
बुछु वय्याकरण ध्राकृत' शब्द के विश्लेषण-ग्राक+कृत-पहले बनी
भाषा के आधार पर इस संस्कृत स भी प्राच्चोनतर सानते ६ | रूद्रट कृत
काव्यालंकार के आलोचक नमिसाधु ने शिक्षितों की पष्सिाजित भाषा
संस्कृत का छोइकर सबंसाधारण लागभा मे प्रचलित और व्याकरण
रादि नियमा से रहित स्वाभाविक वचन-व्यापार का प्रावुन भाषाओं
का मूल आधार माना ६---“प्राकृतेति | रूकलजगज्जन्तूना व्यकरणादि-
भिरनाहितसस्कार. सहजो वचन-व्य।पार. प्रकृति. तत्र भव: संब वा
प्राकृतम् +” इस ग्रकार 'प्राकृत! स्वाभाविक रूप में वरकांसत अपार
भाजित भाषाओं का एक अलग समृह माना जा सकता है | 'प्रक्ृ।त
का आशय यदि रवाभाविक अथवा नसार्गिक विकास स लिया जाय
तो भी गष।कृत भाषाओं को ५क्लात के मृत्न मे कोई ने बाई भापा अद्शप
तागी जिसका आधार लेकर ,ाकृतो क। पििकास हुआ, वह भाषा संस्छत
साना गई € | परन्तु अनक वस्थाकरणा का उक७ লস म संस्कृत स
आशब भारतीय प्राचीन গাব भाषा स हो हा सकता হু जिसमे उसका
प्राचीनतर साहित्यिक रूप-बदिक दोर उसके अनंतर प्रचलित लोक-
भाषा रूप भी तम्निशित ६। इस प्रकार सस्कृत माया का ऋधार लकर
वाभिन्न वालो र विविध स्थाना क मपा अनक द्ाकृत-छूपो मे
व्यक्त हुईं |
ग्राइत का संस्कृत स संबंध-द्योतन कराने के लिय बय्याकरणा
ने कई डलल््लेग्ब दय है। पसिट्देवमणि! ने वाग्मदलंकार टीका'
म सस्कृत के स्वाभाविक रूप स प्राक्त का विकास दिवा हें---
User Reviews
No Reviews | Add Yours...