प्राकृत-विमर्श | Prakrat-Vimarsh

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Prakrat-Vimarsh by डॉ० सरयू प्रसाद अग्रवाल - Dr. Saryu Prasad Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| 1 „९ ] इस प्रकार स्वच्छुंद प्रयोगो के लोप होने पर आर्य भाषा के लो कक मध्यकालीन स्प प्राकृत का विकास होना आरमभ हुआ | परन्तु इन प्राकृतों ने ग्रा्दन ओर प्राचीनतर आर्य भाषा की विशेपताओों की ही अपने विकास का मुख्य आधार बनाया | নীতি संस्कृत तथा प्राकृत के वश्याकरणो ने प्राकृत' ऊे विकास ओ।र विश्लप्रण मे संस्कृत भाषा को ही उसका आधार माना ই | पिशल ने यह स्पष्ट किय्रा ह कि बुछु वय्याकरण ध्राकृत' शब्द के विश्लेषण-ग्राक+कृत-पहले बनी भाषा के आधार पर इस संस्कृत स भी प्राच्चोनतर सानते ६ | रूद्रट कृत काव्यालंकार के आलोचक नमिसाधु ने शिक्षितों की पष्सिाजित भाषा संस्कृत का छोइकर सबंसाधारण लागभा मे प्रचलित और व्याकरण रादि नियमा से रहित स्वाभाविक वचन-व्यापार का प्रावुन भाषाओं का मूल आधार माना ६---“प्राकृतेति | रूकलजगज्जन्तूना व्यकरणादि- भिरनाहितसस्कार. सहजो वचन-व्य।पार. प्रकृति. तत्र भव: संब वा प्राकृतम्‌ +” इस ग्रकार 'प्राकृत! स्वाभाविक रूप में वरकांसत अपार भाजित भाषाओं का एक अलग समृह माना जा सकता है | 'प्रक्ृ।त का आशय यदि रवाभाविक अथवा नसार्गिक विकास स लिया जाय तो भी गष।कृत भाषाओं को ५क्लात के मृत्न मे कोई ने बाई भापा अद्शप तागी जिसका आधार लेकर ,ाकृतो क। पििकास हुआ, वह भाषा संस्छत साना गई € | परन्तु अनक वस्थाकरणा का उक७ লস म संस्कृत स आशब भारतीय प्राचीन গাব भाषा स हो हा सकता হু जिसमे उसका प्राचीनतर साहित्यिक रूप-बदिक दोर उसके अनंतर प्रचलित लोक- भाषा रूप भी तम्निशित ६। इस प्रकार सस्कृत माया का ऋधार लकर वाभिन्न वालो र विविध स्थाना क मपा अनक द्ाकृत-छूपो मे व्यक्त हुईं | ग्राइत का संस्कृत स संबंध-द्योतन कराने के लिय बय्याकरणा ने कई डलल्‍्लेग्ब दय है। पसिट्देवमणि! ने वाग्मदलंकार टीका' म सस्कृत के स्वाभाविक रूप स प्राक्त का विकास दिवा हें---




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