पूर्वोदय | Purvoday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सर्वादय की नीठ & शोषण की जगह सहयोग लेगा और आदमी की शक्ति जो एक दूसरे को पीछे ओर नीचे रखने में लगती है, एक-दूसरे को बढ़ाने ओर उठाने मेँ काम आयगी | तब हम देखेंगे कि आदमी की समस्याएँ खुद उन्नति कंरती जाती हैं। समस्याओं को मिटना तो नहीं है | तब तो ज़िन्दगी ही मिट जायगी और पुरुष का अर्थ पुरुषाथ ही ख़त्म हो जायगा । नहीं, वल्कि समस्यात्रों का धरातल उठेगा ओर नोंन-तेल-लकड़ी की वे न रह जायेगी | वे सांस्कृतिक ओर नेतिक होंगी | तव आदमियों की होड़ आश्थिक न होकर पारसाथिक होगी । भारत की राजनीति को मोका नहीं है कि वह माने कि बिना नीति के तज-काजं चल सक्ता दै । नीति यानी धम-नीति, डिप्लोमेसी नहीं | नेतिकता को वाद देकर स्वयं विग्रह का राजकारण आगे नहीं बढ़ता | साथ ही गांधीजी से यह भी प्रत्यक्ष हो गया है कि अध्यात्म न सिफ संसार से विमुख नहीं है; वल्कि संसार के अभाव में वह अधूरा ओर पीला हो रहता है । इस तरह यद्यपि ऊपर के दो, भोतिक ओर नेतिक, दृष्टिकोणों का अन्तर गहरा ओर मोलिक है, फिर भी विवाद की रुजादश नदीं रहती । जो चेतना को छोड़कर बाहरी परिस्थिति से जूक रे है, एेसे सांसारिकं से अब्के ओर हिलगे विना सांस्कारिका का काम चलते रहना चाहिए |: चुनाव का ओर दलबंदी का काम उस प्रकार का ईमान ओर स्वभाव रखने वाले लोग क्यो न करे ? ज्यादे-से-ज्यादा यही हो सकता है कि कुछु उसको रचनात्मक न मानें} तो पिते रचनात्मक विचार के लोग उस दलगत काम से अलग रहकर अपना काम किये जावें तो स्वरं उन दर्लों का सहयोग उनको मिल सक्ता टं । वल्कि रचनात्मक काम एक ही साथ सब दलों को ताकत पहुँचानेवाला हैं। वह तो ज़मीन है जिस पर हर बीज को पड़ना ओर वहाँ से रस लेना है, नहीं तो वह जड़ न पकड़ पायगा | रचनात्मक आन ¶ शब्द कन्न हत्‌ चलता त जिसको জী करना छा 'रचनात्मक शब्द श्घर बहुत चलत है | जिसको जे करना हता




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