महात्मा गांधिपरक संस्कृत काव्य | Mahatma Gandhiparak Sanskrit Kavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
403
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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आभार प्रदर्दनि--
शोघ-प्रबन्ध को पूर्ण करने के पश्चात् में स्पष्ट रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंची हूँ कि
माँ भारती को कृपा दृष्टि और गुरु का निर्देशन ही शोधार्थों के शोध-यात्रा मार्ग को
प्रशस्त करते हैं। अतएव सर्वप्रथम में वाणी को देवी सरस्वतो के भरति श्रद्धावान हूं
जिनकी अन्तिम अनुकम्पा के फलस्वरूप ही मैं अपना शोध-प्रबन्ध पूर्ण कर पाई हूँ।
मैं माननीय गुरुदेव प्रोफेसर डॉ, हरिनारायण दीक्षित (अध्यक्ष संस्कृ विभाग,
कुमायूँ विश्वविद्यालय नैनोताल) के प्रति प्रणाम पूर्वक हार्दिक आधाव व्यक्त करती हूँ
और अपने को सौभाग्यशालिनी मानती हूं कि उन्होंने मुझे अपने निर्देशन में शोध-प्रबन्ध
लिखने की अनुमति प्रसन्नता पूर्वक दी। यही नहीं, अपने पुस्तकाल+ से मेरे शोध-कार्य
के लिए आवश्यक और उपयोगी पुस्तकें भी बड़ी उदारता पूर्वक दी।
अध्ययन-अध्यापन में अत्यन्त व्यस्त होते हुए भी मेरी इच्चानुसार उन्होंने मुझे अपने
बहुमूल्य सुझाव दिये * अपने दीर्घकालीन अनुभव से लाभान्विठ कराया और शोघ-यात्रा
में आने वाली बाघाओं को पार करने का साहस प्रदान किया। यही उन्हीं की शिष्य
वत्सलता का परिणाम है कि मैं अपने शोध-प्रबन्ध रूपी विशाल सागर को अपनी तुच्छ
बुद्धि रूपी नौका से पार कर सको हूं। जब-जब शोध कार्य में उपस्थित होने वाले विघ्नो
से घबराकर मैं निराश हो जाती थी और शोघ-कार्य में प्रवृत नहीं हो पाती थी तब-तब
आदरणोय गुरुदेव का सदुपदेश हो मुझे आशा प्रदान करता था और उनका प्रेरणादायक
उत्तमोत्तम निर्देशन मुझे पुनः अपने कार्य में प्रवृत्त कर देता था! गुरु जौ के इस महान्
उपकार कौ मै सदैद ऋषि रहूँगी क्योंकि उनके निर्देशन के बिना मेरा शोध-प्रबन्ध
कदापि पूर्णता को प्राप्त न करता। इतना ही नहीं मेरी प्रार्थना पर आदरणीय गुरुदेव
प्रोफेसर डॉ. दीक्षि ने शोध-प्रबन्ध के प्रकाशन के अवसर पर भूमिका लिखकर मुझे
अनुगृहीत किया। मुझे आशा है कि भविष्य में भी उनका आशीर्वादात्मक निर्देशन
मिलता रहेगा।
अपनी अग्रजा डॉ, किरण टण्डन (रीडर, सस्कृत विभाग, कुमायूँ
विश्वविद्यालय, नैनोताल) ने मेरी सर्वप्रकारेण सहायता करके मुझे चिस्ता-मुक्त रखा।
उनके उपयोगी सुझावों तथा आर्थिक सहयोग के बिना तो शोध-कार्य प्रारम्भ करने में भी
मैं असमर्थ थी। अतः मैं उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती हूं और आशा करतो हूं
कि भविष्य में भी भेरा मनोबल बढ़ाठो रहेंगी।
राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी को मैं अपनी हार्दिक श्रद्धाजलि अर्पित करती हूँ।
जिनका राष्ट्प्रेम और जीवन दर्शन प्रत्येक भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
मैं अपनी बड़ी बहन कु. सुधा टण्डन (जिला संख्याधिकारी, नैनीताल) के प्रति
धन्यवाद व्यक्त करना अपना परम कर्त्तव्य समझती हूं क्योंकि उनका उदारता पूर्वक
किया गया आधिक सहयोग ओर आशीर्वाद न मिलता तो कदाचित् मै अपना
शोध-अबन्ध पूर्ण न कर पाती।
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